मृदा विन्यास/मृदा सरंचना (soil structure in hindi) - इसके प्रकार एवं कृषि में इसका महत्व

मृदा कई प्रकार के कणों से मिलकर बनी होती हैं इन कणों के समूह को ही मृदा विन्यास/मृदा सरंचना (soil structure in hindi) कहा जाता हैं ।

मृदा विन्यास/मृदा सरंचना का अर्थ | meaning of soil structure in hindi

मृदा प्राथमिक कणों, जैसे- बालू, सिल्ट तथा क्ले और द्वितीयक कणों से मिलकर बनी होती है । मृदा में ये कण कई प्रकार से व्यवस्थित होते हैं ।

अतः मृदा कणों की व्यवस्था को मृदा संरचना (soil structure in hindi) कहते हैं ।

मृदा विन्यास/मृदा सरंचना की परिभाषा | definition of soil structure in hindi

"व्यक्तिगत कणों और उनके समुच्चयों (aggregates) की किसी निश्चित प्रतिरूप (pattern) में व्यवस्था को संरचना कहते हैं ।"

मृदा सरंचना से आप क्या समझते हैं? | soil structure in hindi

समुच्चय मृदा कणों के समूह होते हैं, इस प्रकार मृदा कणों के समूह की रचना ही मृदा विन्यास/मृदा सरंचना (soil structure in hindi) कहलाती है

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मृदा संरचना कितने प्रकार की होती है | types of soil structure in hindi

मृदा संरचना के प्रमुख प्रकार -

  • प्लेटी संरचना
  • प्रिज्म संरचना
  • ब्लांकी संरचना
  • गोलाकार संरचना


प्लेटी संरचना -

इसमें कण पुंजों का क्षैतिज अक्ष (horizontal axis), ऊर्ध्वाधर अक्ष (vertical axis) की अपेक्षा अधिक विकसित होता है । इससे ये चपटे, दबे हुए या लैंस के समान दिखाई देते हैं । जब इनकी परतें मोटी होती हैं तो प्लेटी संरचना कहलाती है । पतली परतें होने पर स्तरीय (laminar) संरचना कहलाती है ।

प्रिज्म के समान -

इसमें कण पुंजों का विकास ऊँचाई में अधिक होता है तथा अन्य दिशाओं में चपटे किनारे होते हैं । जब इस प्रकार के कण पुंजों का शीर्ष तथा किनारे गोलाकार होते हैं तो संरचना स्तम्भाकार (columnar) होती है । जब सिरा समतल या सपाट होता है तो उसे प्रिज्मीय संरचना कहते हैं ।

ब्लॉकी संरचना ( Blocky Structure ) —

इसमें कण पुंजों का विकास तीनों दिशाओं में बराबर होता है । इसे घनाकार (cuby) संरचना भी कहते हैं । कण पुंज (peds) घन के आकार के होते हैं तथा सतह चपटी या गोलाकार होती है ।

गोलाकार संरचना ( Spheroidal structure ) —

इसमें कण पुंजों (peds) का आकार गोलाकार होता है । सभी ओर समान विकास होता है । इनका आकार छोटा होता है । इस वर्ग के कण पुंज प्रायः दानेदार (granular) कहे जाते हैं जो कि कम सरन्ध्री होते हैं । जब कणिकायें अधिक सरन्ध्री होती हैं तो क्रम्बी संरचना होती है कृषि फसलों की दृष्टि से सर्वोत्तम संरचना है ।

"प्राकृतिक कण पुंजों को पैड्स (peds) कहते हैं जबकि कृत्रिम रूप से बना पुंज ढेला (clod) कहलाता है ।"

सैद्धान्तिक रूप से (theoretically) यह मानकर कि मृदा कण गोलाकार है, भूमि कणों की संरचना चार प्रकार से सम्भव है -

  • दानेदार संरचना या कणिकामय संरचना ( Granular structure )
  • स्तम्भाकार संरचना ( Columnar structure )
  • टोस संरचना ( Compact structure )
  • तिरछी संरचना ( Oblique structure )


  • दानेदार संरचना या कणिकामय संरचना (granular structure) - इस प्रकार की संरचना में बहुत से छोटे - छोटे कण एक साथ सट कर छोटे तमूह बना लेते हैं और ये कणों के समूह या कण पुंज एक कण के समान बन कर ( इकाई रूप में ) चार कण पुंजों को छूता है । इस प्रकार कणों के बीच बहुत इस प्रकार व्यवस्थित हो जाते हैं कि प्रत्येक कण पुंज अपने पड़ोस रन्ध्राकाश छूट जाने के अतिरिक्त इन कण पुंजों के बीच में भी रन्ध्राकाश छूट जाता है । अतः सम्पूर्ण रन्ध्राकाश बढ़कर 78.58% हो जाता है । ऐसी अवस्था बारीक कण वाली मिट्टियों जैसे दोमट, सिल्ट तथा चिकनी मिट्टी में पाई जाती है । जब दानेदार या कणिकामय संरचना में कण समूह या कणिकायें बहुत अधिक सरन्ध्री होती हैं तो उस संरचना को मृदु कण संरचना (crumby structure) कहा जाता है । चिकनी मिट्टी में चूना मिला देने पर मृदु कण संरचना (crumby) विकसित होने में सहायता मिलती क्योंकि चूना भूमि के कणों को अर्शित कर देता है ।
  • स्तम्भाकार संरचना (columnar structure) — इस प्रकार की संरचना में मिट्टी के कण परस्पर चार बिन्दुओं पर सटते हैं । ऐसी संरचना में 47.64 प्रतिशत रन्ध्राकाश होता है ।
  • टोस संरचना ( Compact structure ) - इस प्रकार की संरचना में दो कर्गी के बीच बहुत कम स्थान रहता है ऐसी संरचना के कणों के बीच न्यूनतम स्थान रह जाने से मिट्टी के अन्दर वायु तथा पक्षी का संचार बहुत कम हो जाता है ।
  • तिरछी संरचना ( Oblique structure ) - इस विन्यास में प्रत्येक कण अपने पड़ोस के 6 कणों को छूता है अतः रन्ध्राकाश कम हो जाता है (25,95% रन्ध्राकाश) । बलुई भूमि में एक कणीय संरचना (single grain structure) पाई जाती है ।


मृदा सरंचना का क्या महत्व हैं | Impotance of soil structure in hindi


मृदा सरंचना का कृषि में महत्व -

  • पौधों की वृद्धि के लिये मृदा संरचना का बहुत महत्व है क्योंकि यह रन्ध्रता की प्रकृति तथा मात्रा को प्रभावित करती है ।
  • मृदाओं में रन्ध्राकाश (pore space) जल एवं वायु की मात्रा, जीवाणुओं की क्रियाशीलता, पोषक तत्वों की प्राप्यता, पारगम्यता आदि मृदा संरचना पर आधारित है ।
  • कणों की दानेदार संरचना कृषि के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । कणिकामय या दानेदार (granular or crumby) संरचना में भूमि के अन्दर पर्याप्त मात्रा में वायु एवं जल संचार होता है ।
  • पौधों का समुचित विकास होता है ।
  • मृदा की जलधारण शक्ति भी अधिक होती है ।
  • जड़ें अधिक गहराई तक प्रवेश कर अच्छी तरह फैलती हैं जिससे पौधों को अधिक नमी व पोषक तत्व प्राप्त होते हैं ।
  • ठोस तथा सघन संरचनाओं में पौधों की वृद्धि अच्छी नहीं होती है । जल व वायु संचार अच्छा नहीं होता है । पौधों का मूल तन्त्र अच्छी तरह विकसित नहीं हो पाता है ।
  • संरचना मृदा का एक ऐसा गुण है जो जुताई, जल निकास, चूना डालने, उर्वरक तथा खाद डालने जैसी प्रबन्धात्मक क्रियाओं द्वारा आसानी से बदला जा सकता है ।
  • मृदा को दानेदार बनाने के लिये सदैव उसे ओट आने पर ही (उचित नमी की अवस्था में) जोतना चाहिये ।


मृदा सरंचना को प्रभावित करने वाले कारक


जलवायु -

शुष्क क्षेत्र तथा आर्द्र क्षेत्र मृदाओं में समुच्यन बहुत कम होता है । शुष्क क्षेत्र में क्ले की मात्रा बहुत कम होती है । आर्द्र क्षेत्रों में वर्षा के आधिक्य से क्ले पानी के साथ निम्न संस्तरों में चले जाते हैं जिससे पृष्ठ सतह में समुच्चयन बहुत कम होता है । अत: “अर्ध-शुष्क (semi - arid) तथा अर्ध-आर्द्र (semi - humid) क्षेत्रों की मृदाओं में स्थायी समुच्चयों (stable aggregates) की प्रतिशतता प्रायः अधिकतम होती है । "मध्य वर्षा वाले क्षेत्रों में क्ले तथा जीवांश पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होने पर समुच्चयन अधिकतम होता है । ताप में वृद्धि होने से कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम हो जाती है जिसके फलस्वरूप समुच्चयन भी कम होता है ।

जैव पदार्थ -

जैव पदार्थ मृदा में कणिकायन कारक (granulating agent) के रूप में कार्य करता है । जैव पदार्थ में कण समूहों को स्थिर करता है । कार्बनिक पदार्थ सरन्ध्री होने के कारण क्ले मिट्टी की सुघट्यता को कम कर देता है और व्यक्तिगत मृदा कण समूहों की सरन्ध्रता का उत्तरदायी होता है । कार्बनिक पदार्थ में सुघट्यता (plasticity) और संसंजन (cohesion) कम होता है । यह बहुत सरन्ध्र तथा विरल (loose) होता है इसीलिए कार्बनिक पदार्थ मिलाने से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है । बलुई मृदा में मिलाने से इसकी संरचना में सुधार होता है क्योंकि इसमें कणों को बाँधने की शक्ति (binding power) होती है । मिट्टी की जलधारण व पोषक तत्वों को धारण करने की शक्ति भी बढ़ जाती है क्योंकि इसमें कार्बनिक कोलाइड पाया जाता है । कार्बनिक कोलाइड उपस्थित होने से समुच्चयन की क्रिया में सुधार होता है ।

एकान्तर भीगने तथा सूखने की क्रिया का प्रभाव -

एकान्तर भीगने तथा सूखने की क्रियायें, कड़ी संघनित तथा बल से जुड़े हुए मृदा ढेलों को तोड़कर मृदा को दानेदार बनाती हैं । एकान्तर जमने तथा पिघलने की क्रिया द्वारा समुच्चयन पैदा होता है ।

पौधे भी मृदा संरचना के विकास में सहायक होते हैं । पौधों से भूमि को जैव पदार्थ मिलता है जो समुच्चयन में सहायक है । जड़ों के मृदा में प्रवेश करते समय मृदा टूट कर दानेदार बनती है । जड़ों से एक प्रकार का लसदार पदार्थ वित होता है जो मृदा कणों को बाँधकर समुच्चयों का निर्माण करता है । जड़ें मृदा से नमी शोषित कर मृदा के सूखने या सिकुड़ने में सहायक होती हैं जिससे मृदा संरचना पर प्रभाव पड़ता है ।

मृदा जीव —

मृदा में उपस्थित बड़े जन्तु, जैसे - चूहे, लोमड़ी, केंचुए मिट्टी खोदकर, पलटकर, कार्बनिक पदार्थ को भली - भाँति मिलाकर समुच्चयन में सहायक होते हैं । सूक्ष्म जीव, जैव पदार्थ का अपघटन कर कार्बनिक कोलाइड एवं कार्बनिक अम्लों का निर्माण करते हैं जो समुच्चयन (aggregation) में सहायक हैं ।

चूना –

चूना मिलाने से समुच्चयन बढ़ता है । Ca, Mg समुच्चयन बढ़ाते हैं जबकि सोडियम का उल्टा प्रभाव (deflocculation) होता है ।

जुताई-गुड़ाई आदि क्रियाओं का प्रभाव -

मृदा संरचना पर कृषि क्रियाओं का प्रभाव पड़ता है । शुरू की जुताई से खेत में ढेले (clods) पैदा होते हैं और बाद की जुताइयों में टूट - टूट कर छोटे होते चले जाते हैं । मिट्टी पलटने वाले हल मिट्टी को उठाते हैं , तोड़ते हैं और काटते हैं तथा कणी भवन (granulation) में वृद्धि करते हैं । यदि भूमि में उचित नमी की अवस्था में जुताई की जाये तो ढेले शीघ्रता से क्रम्ब्स में परिवर्तित हो जाते हैं । भूमि में उचित नमी की दशा में जुताई करने पर भुरभुरापन अधिक होता है । अधिक जुताई - गुड़ाई की क्रियायें करने से मृदा संरचना खराब होती है । भारी मशीनों का प्रयोग, पशुओं द्वारा अधिक चराई, अधिक नम या शुष्क बंशा में जुताई मृदा समुच्चयन को नष्ट करती है । ओट पर जुताई व आवश्यक मात्रा में जुताई समुच्चयन को बढ़ाती है ।

कृत्रिम मृदा नियंत्रक ( Synthetic Soil Conditioners ) -

जटिल रासायनिक प्रकृति के संश्लेषित पदार्थों, जैसे - क्रिलियम, बोन्डाइट, पौली-एक (poly ack) आदि का प्रयोग मृदा समुच्चयन के लिये किया जा सकता है ।

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