मुख्यतः अरण्डी की खेती (arandi ki kheti) तेल की प्राप्ति के लिए की जाती है इसके तेल एवं बीजों का निर्यात किया जाता है ।
- अरण्डी का वनस्पतिक नाम (Botanical name) - रिसिनस कोम्यूनिस (Ricinus Communis L.)
- कुल (Family) - यूफोरबिएसी (Euphorbiaceae)
- गुणसूत्र संख्या (Chromosose) -
अरण्डी की खेती कैसे करें | arandi ki kheti | castor oil farming in hindi
अरण्डी की खेती (arandi ki kheti) कैसे होती है पूरी जानकारी | Farming Study |
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अरण्डी की खेती का उत्पत्ति स्थान व इतिहास —
अधिकांश वैज्ञानिक के अनुसार अरण्डी जन्म स्थान इथोजिया (अफ्रीका) है । कश्मीर हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में यह जंगली रूप में पाया जाता है जिसके आधार पर कुछ वैज्ञानिक इसे भारत में पैदा हुआ मानते हैं । वाट 1892 का विश्वास है कि यह भारत का ही पौधा है ।
अरण्डी की खेती का वितरण व क्षेत्रफल –
अमेरिका, अर्जिटीना, मिस् , सूडान, अफ्रीका, इटली, फ्रांस, अरब, ईरान, भारत, कोरिया, जापान, ब्राजील आदि देशों में यह पैदा किया जाता है ।
उपज के अनुसार प्रथम तथा द्वितीय स्थान क्रमशः ब्राजील व भारत का है । जहाँ पर विश्व की 38.9% तथा 26.7% उपज होती है । आंध्र में भारत का 50% उत्पादन होता है । उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद, जालौन, बांदा, कानपुर, आगरा, बिजनौर, मिर्जापुर आदि जिलों में मुख्य रूप से पैदा होता है ।
अरण्डी की खेती के लिए उपर्युक्त जलवायु -
समुद्र तल से 7,000 फुट की ऊँचाई तक अरण्डी की खेती (arandi ki kheti) होती है । 65-85 सेमी० वार्षिक वर्षा वाले स्थानों पर अरण्डी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है ।
विभिन्न अवस्थाओं में 65-100°F तापमान उपयुक्त होता है । पकने के समय शुष्क व औसत तापमान का होना आवश्यक है ।
अरण्डी की खेती का महत्त्व एवं उपयोग —
मुख्यतया अरण्डी को तेल के लिए उगाया जाता है । जिस तेल का निर्यात किया जाता है ।
अरण्डी के तेल का उपयोग निम्न प्रकार से किया जाता है -
- अरण्डी के तेल को मशीनों में यह स्नेहक के लिए प्रयोग किया जाता है ।
- तेल को गुड़ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है ।
- अरण्डी के तेल से साबुन, सुगन्धित तेल, औषधियाँ आदि बनाये जाते हैं ।
- अरण्डी के तेल से कृत्रिम चमड़ा भी बनाया जाता है ।
- अरण्डी के पोधे की पत्तियाँ रेशम की कीड़े के खाद्य के लिए प्रयोग की जाती हैं ।
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अरण्डी की खेती के लिए उपर्युक्त मृदा/भूमि -
उत्तरी भारत की एल्यूवियल मृदा तथा दक्षिणी भारत की लेटेराइट मृदा अरण्डी की खेती (arandi ki kheti) के लिए उपयोगी होती है । हल्की व भुरभुरी मृदा इसके लिए उपयुक्त होती है ।
अरण्डी की उन्न्त किस्में -
एक वर्षीय व बहु-वर्षीय तथा छोटे दाने वाली व बड़े दाने वाली, कई प्रकार की अरण्डी की जातियाँ होती हैं ।
अरण्डी की प्रमुख किस्में - टा-3, तराई-4, कालपी-6, पंजाब, अरण्डी-1 इत्यादि ।
अरण्डी की खेती के लिए भूमि की तैयारी -
शुद्ध फसल के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके 2-3 जुताई देशी हल से करनी चाहिए ।
अरण्डी की खेती के लिए बीज व मात्रा -
बीज प्रमाणित व कवकनाशी से उपचारित होना चाहिए । शुद्ध फसल में बीज दर 12-15 किग्रा० तक मिश्रित फसल में 6-8 किग्रा०/हैक्टर रखते हैं ।
अरण्डी की खेती का सही समय/विधि -
अरण्डी को डिबलर से या हल के पीछ कूँड़ों में बोते हैं । बीज को 5-8 सेमी० गहराई पर 90×60 सेमी० के अन्तरण से बोते हैं । जून के अन्तिम सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बुवाई कर देते हैं ।
अरण्डी की खेती के लिए आवश्यक खाद -
जातियाँ - N2 Kg/Ha. = P2O5 Kg/Ha. = K2O Kg/Ha.
क्षेत्रीय जातियाँ - 40-50 = 40-50 = 20-40
संकर जातियाँ - 80 = 60 = 62
अरण्डी की खेती में आवश्यक सिंचाई –
60-80 सेमी० वार्षिक वर्षा का वितरण समान होने पर अच्छी उपज होती है । वर्षा ऋतु में सूखा पड़ने पर 1-2 सिंचाई कर देनी चाहिए ।
अरण्डी की खेती में निराई-गुड़ाई –
अरण्डी की फसल में 2-3 गुड़ाईयाँ लाभदायक होती है । खरपतवार विशेष नुकसान नहीं पहुँचा पाते हैं ।
अरण्डी की खेती की खेती की कटाई व मुडाई –
फसल नवम्बर से फरवरी तक जातियों के अनुसार पकती है । फल पकने पर गुच्छों को तोड़ लेना चाहिए । धूप में सुखाने के बाद डंडों की सहायता से दाने अलग कर लेने चाहिए ।
अरण्डी की खेती से प्राप्त उपज –
मिश्रित फसल से 6 कुन्तल तथा शुद्ध फसल से 10-12 कुन्तल/हैक्टर तक उपज प्राप्त हो जाती है ।
अरण्डी की खेती में लगने वाले कीट व उनका नियंत्रण -
1. अरण्डी बीज छेदक - पौध पीले चमकदार रंग का होता है । अरण्डी कैप्सूल में अन्दर घुसकर दानों को खाता है । सितम्बर व फरवरी में अधिक क्रियाशील होता है ।
इसके नियंत्रण के लिए - थायोडीन 1500 मिली०, 900 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
2. रोयेंदार सूँडी – अरण्डी में इसका प्रकोप अगस्त से नवम्बर तक होता है ।
इसके नियंत्रण के लिए - 0-15% इण्डोसल्फान 35 ई० सी० 900 ली० पानी में घोलकर छिड़कना चाहिए ।
3. सेमीलूपर - सूँडी पत्तियों को खाती है । यह जुलाई से नवम्बर तक अधिक क्रियाशील होती है ।
इसके नियंत्रण के लिये - 0-15% इण्डोसल्फान 35 ई० सी० 900 ली० पानी में घोलकर छिड़कना चाहिये ।
अरण्डी की खेती में लगने वाले रोग व उनकी रोकथाम -
1. अंगमारी - यह फफूँद से लगती है । यह बीजांकुरों को नष्ट कर देती है । पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं, रोग बढ़ने पर पत्तियों गिर जाती है ।
इसकी रोकथाम के लिये - 0.2% जिनेब का 10-15 दिन के अन्तर पर छिड़काव करना चाहिये ।
2. गेरूई – पत्तियों की दोनों सतहों पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं । अधिक प्रकोप से पत्तियाँ सूख जाती हैं ।
इसकी रोकथाम के लिये - 0-21 जिनेब का छिड़काव करना चाहिए ।