किसी फसल को उगाने के लिए भूमि में संचित जल की मात्रा व भूमि में प्रयोग किये गये कुल जल की मात्रा का अनुपात सिंचाई दक्षता (irrigation efficiency in hindi) कहलाता है ।
सिंचाई दक्षता को प्रतिशत (%) के रूप में व्यक्त किया जाता है ।
"Irrigation Efficiency is the ratio of water stored in the soil for crops grown to the total water applied. It is expressed in percentage."
सिंचाई दक्षता को निम्न सूत्र की सहायता से निकाला जाता है -
सिंचाई दक्षता (%) = फसल उगाने के लिए भूमि में संचित किए गए जल की मात्रा/प्रयोग किए गए कुल जल की मात्रा×100
सिंचाई दक्षता को बढ़ाने के क्या उपाय है?
सिंचाई दक्षता को बढ़ाने के प्रमुख उपाय -
- फसलों की जल माँग ( Water Requirement of Crops )
- सिंचाई की नालियों में जल की हानि ( Loss of water in irrigation channels )
- वायु का प्रभाव ( Effect of Wind )
- वाष्पीकरण की क्रिया ( Evoporation Process )
- भूमि का असमान धरातल ( Unlevelled topography of land )
सिंचाई दक्षता को बढ़ाने के उपाय | measures to increase the irrigation efficiency in hindi
पौधे अधिकतर अपने जड़ क्षेत्र (root zone) की गहराई के स्तर तक स्थित मृदा में उपलब्ध जल का उपयोग अपनी वृद्धि के लिए करते हैं । फसलों की जल माँग के आधार पर किसी फसल के जीवन काल में कुल सिंचाई की मात्रा तथा उसके प्रयोग के अन्तराल निर्धारित किए जाते हैं ।
सिंचाई दक्षता किसे कहते है इसे बढ़ाने के उपाय एवं इसे कैसे ज्ञात किया जाता है |
किसी भी सिंचाई प्रणाली में पौधों को सिंचाई जल की अधिकतम उपलब्धता कराने के लिए उच्च सिंचाई दक्षता की किसी प्रणाली का चुनाव किया जाता है । सिंचाई के लिए किसी खेत में प्रयोग किये जल का विभिन्न कारणों से पौधों द्वारा उपयोग न कर पाने के कारण सिंचाई दक्षता (irrigation efficiency in hindi) में कमी आती है । इससे सिंचाई जल तथा धन दोनों का अपव्यय होता है ।
ये भी पढ़ें :-
अतः सिंचाई दक्षता को बढ़ाने के लिए प्रयास करना आवश्यक है इसके लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिए -
1. फसलों की जल माँग ( Water Requirement of Crops ) -
खेत में उगाई गई फसल की जल माँग के आधार पर सिंचाई की जानी चाहिए । आवश्यकता से अधिक जल का प्रयोग करने पर पौधे अपनी वृद्धि के लिए इस जल का पूर्ण उपभोग नहीं कर पाते और वह जल व्यर्थ चला जाता है । जिससे सिंचाई दक्षता (irrigation efficiency in hindi) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
2. सिंचाई की नालियों में जल की हानि ( Loss of water in irrigation channels ) -
खेत में सिंचाई की नालियों का जल स्रोत के पास होने पर जल का अधिकतम उपयोग होता है । जल स्रोत से खेत अधिक दूरी पर स्थित होने पर सिंचाई नालियाँ भी लम्बा रास्ता तय कर खेत तक पहुँचती हैं जिससे जल की हानि की सम्भावना बढ़ जाती है । सिंचाई नालियों में उगे हुए खरपतवार तथा सिंचाई की नालियों की भली - भाँति सफाई न होने के कारण भी सिंचाई की नालियों में सिंचाई जल के बहने में अवरोध उत्पन्न हो जाता है जिससे सिंचाई दक्षता कम हो जाती है । अतः सिंचाई की नालियों का जल स्रोत के समीप होना चाहिए व उनकी भली - भाँति सफाई होनी चाहिए ।
3. वायु का प्रभाव ( Effect of Wind ) -
बौछारी विधि द्वारा सिंचाई करने पर कम जल की आवश्यकता होती है । इस विधि का प्रयोग ऐसे समय पर करना चाहिए जब वायु की गति मन्द हो, तीव्र वायु के विक्षोभ (turbulence) के साथ बौछार की गई जल की बूंदें उचित स्थान पर नहीं पहुँच पाती । अतः सिंचाई दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और वह कम हो जाती है ।
4. वाष्पीकरण की क्रिया ( Evoporation Process ) -
वाष्पीकरण की क्रिया में जल का ह्रास भूमि की सतह से, वनस्पति द्वारा व प्रत्यक्ष रूप से वर्षा की बूंदों से होता रहता है । अतः हमें सिंचाई की उपयुक्त विधि का चुनाव करना चाहिए । जहाँ तक सम्भव हो सके बौछार विधि को इन परिस्थितियों में नहीं अपनाना चाहिए ।
5. भूमि का असमान धरातल ( Unlevelled topography of land ) -
समतल भूमि होने पर सिंचाई दक्षता अधिकतम होती है जबकि भूमि ऊंची - नीची होने पर नीचे स्थानों में अधिक पानी भर जाता है जिससे सिंचाई दक्षता (irrigation efficiency in hindi) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
ये भी पढ़ें :-
सिंचाई दक्षता को कैसे ज्ञात किया जाता है?
एक गेहूँ के खेत में 40 सेमी० पानी किसी सिंचाई प्रणाली द्वारा दिया गया ।
इस सिंचाई जल का निम्न प्रकार से ह्रास हुआ -
( i ) सिंचाई की नालियों में जल की हानि = 10%( ii ) प्रयोग के समय जल की हानि = 25%
( iii ) वाष्पीकरण के समय जल की हानि = 5%
उपरोक्त हानियों को दृष्टिगत रखते हुए सिंचाई दक्षता (irrigation efficiency in hindi) ज्ञात कीजिए -
सेमी खेत में दिया गया कुल जल = 40 सेमी०
( i ) सिंचाई की नालियों में जल की हानि = 10%
अतः सिंचाई की नालियों में जल ह्रास 10/100x40 = 4 सेमी०
शेष जल की मात्रा = 40 - 4 = 36 सेमी०
( ii ) प्रयोग के समय जल की हानि = 25%
अत: प्रयोग के समय जल ह्रास = 25/100x36 = 9 सेमी०
शेष जल की मात्रा = 36-9 = 27 सेमी०
( iii ) वाष्पीकरण के समय जल की हानि = 5%
अतः वाष्पीकरण के समय जल का ह्रास = 5/100x27 = 1.35 सेमी०
शेष जल की मात्रा = 27-1.35 = 25.65 सेमी०
फसल उगाने के लिए संचित किये गये जल की मात्रा = 25.65 सेमी०
सिंचाई दक्षता = WS/WA×100
25.65/40x100 = 64.1%