ड्रिप सिंचाई (drip irrigation in hindi) विधि मुख्य: ऐसे शुष्क क्षेत्रों में अपनाई जाती है जहां पानी की अत्यधिक कमी के कारण यह अधिक मूल्यवान होता है ।
अतः टपक सिंचाई या ड्रिप सिंचाई (drip irrigation in hindi) विधि का दक्षतापूर्वक प्रयोग आवश्यक हो जाता है ।
शुष्क क्षेत्रों में सतही सिंचाई प्रणाली को न अपनाकर अधिक दक्षतापूर्ण सिंचाई प्रणाली, टपक सिंचाई प्रणाली का प्रयोग लाभकारी रहता है इसे टपकेदार सिंचाई प्रणाली भी कहा जाता है ।
ड्रिप सिंचाई क्या है | drip irrigation in hindi
ड्रिप/टपक सिंचाई - "टपकेदार सिंचाई विधि सिंचाई की एक ऐसी विधि है जिसमें जल को अधिकतम सिंचाई दक्षता के लिए पौधों के जड़ क्षेत्र के निकट बाह्य साधनों द्वारा एक-एक बूंद करके धीरे - धीरे प्रयोग किया जाता है ।"
"Drip Irrigation is that method of irrigation, in which water is used slowly and drop by drop by external means near the root zone area of the plants to achieve the maximum irrigation efficiency."
ड्रिप सिंचाई विधि की कार्य प्रणाली | functioning of a drip irrigation systein in hindi
टपकेदार सिंचाई विधि, सिंचाई की एक आधुनिक विधि है । जिन क्षेत्रों में जल का अत्याधिक अभाव होता है, वहाँ पर यह विधि प्रयोग में लाई जाती है ।
सर्वप्रथम 1960 में इजराइल के इंजीनियर सिम्चाब्लास नामक सिंचाई वैज्ञानिक ने इस विधि का प्रयोग शुरू किया तथा 1964 में उन्होंने सिंचाई पद्धति को पेटेंट भी कराया ।
उस समय लोहे के पाइप को प्रयुक्त करके टपकेदार सिंचाई प्रणाली (drip irrigation system in hindi) का एक नमूना एक खेत के लिए तैयार किया गया था, परन्तु आज प्लास्टिक तथा अन्य उपयोगी मिश्रणों के रसायनों से तैयार आधुनिक यन्त्रों एवं उपकरणों का विकास हो जाने के पश्चात् बहुत ही क्षमताशाली एवं सरलतापूर्वक प्रयोग हो सकने वाले (efficient and easily usable) नमूनों को विकसित कर लिया गया है ।
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टपकेदार सिंचाई प्रणाली की विस्तृत कार्यविधि के निम्न चित्र द्वारा दर्शाया गया है -
टपक सिंचाई (Drip Irrigation) क्या है ड्रिप सिंचाई विधि की कार्य प्रणाली का चित्रसहित वर्णन कीजिए |
इस प्रणाली में निम्नलिखित स्रोत, साधन, यन्त्रों एवं उपकरणों का प्रयोग होता है -
- एक जल स्रोत जैसे कुँआ अथवा ट्यूब वैल
- मोटर तथा पम्प यूनिट
- एक संग्रह पात्र धारिता आवश्यकतानुसार
- फिल्टर पात्र यूनिट
- फर्टीगिशन/पेस्टीसाइड/हसिाइड टैंक यूनिट
- मेन पाइप लाइन
- सब पाइप लाइन
- वाल्च, रिड्यूसर, नोजल, दाबमापी व नियन्त्रक आदि ।
टपक सिंचाई या ड्रिप सिंचाई विधि की कार्य प्रणाली
इस विधि में सर्वप्रथम किसी जल स्रोत जैसे कुएँ से सिंचाई जल की प्राप्ति के लिए एक मोटर - पम्प यूनिट को उसके निकट उचित प्रकार से स्थापित किया जाता है, जिससे जल की आपूर्ति एक संग्रहण पात्र (storage tank) में की जाती है जिसकी धारिता प्रायः 1000 लीटर खेत में आकार एक फसल की जलमाँग के आधार पर निश्चित की जाती है ।
प्रायः स्टोरेज टैंक का सम्बन्ध एक फिल्टर पात्र यूनिट से होता है, परन्तु जब फसल में किसी उर्वरक, कीटनाशी अथवा खरपतवारनाशी का प्रयोग करना हो तो संग्रहण पात्र से सिंचाई जल इनमें से किसी एक से सम्बन्धित टैंक यूनिट तथा इसके बाद फिल्टर से होता हुआ आगे प्रवाहित होता है ।
इस प्रकार सिंचाई जल संग्रहण पात्र (fertigation unit), फिल्टर पात्र (filter pot), मेन वाटर लाइन तथा सब लाइन से होता हुआ पौधे तक पहुंचता है । सब लाइन में नोजल, अमीटर तथा ड्रिपर (dripper) आदि लगे रहते हैं जिनसे एक - एक बूंद करके पौधों में पानी पहुँचता रहता है ।
एक उपयुक्त स्थान पर दाब नियन्त्रक लगाकर पौधों में में मूल अभिधारणा के अनुरूप एक - एक बूंद करके सिंचाई जल नियन्त्रित किया जाता है ।
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टपक सिंचाई या टपकेदार सिंचाई प्रणाली को अपनाने के क्या लाभ है? | advantages of drip irrigation in hindi
टपकेदार सिंचाई विधि के अनुसार पौधे के जड़ क्षेत्र के निकट सिंचाई जल को एक - एक बूंद करके प्रयोग की जाती है ।
टपक सिंचाई या ड्रिप सिंचाई विधि के प्रमुख लाभ -
- इस विधि को अपनाने से अन्य विधियों जैसे सतही व बौछारी विधियों की तुलना में अधिक उपज प्राप्त होती है, क्योंकि जल व पोषक तत्वों का पौधों द्वारा सम्पूर्ण मात्रा में प्रयोग होता है ।
- इस विधि में जल की एक - एक बूंद पौधों के जड़ क्षेत्र में पहुँचती है । अतः जल का परिवहन (conveyance), अपधावन (run - off), वाष्पीकरण (evaporation) अथवा भूमिगत पारच्यवन (percolation) जैसी क्रियाओं में ह्रास नहीं होता है ।
- इस विधि से सिंचाई करने पर दक्षता अधिक होती है
- भूमि की कटाव से हानि की कोई सम्भावना नहीं होती है ।
- इस विधि में जल के साथ उर्वरक, कीटनाशी अथवा खरपतवानाशी का सरलतापूर्वक प्रयोग सम्भव होता है, जिससे उपज में वृद्धि होती है ।
- इस विधि को अपनाने में कम श्रम की आवश्यकता होती है ।
- यह विधि गन्ना, कपास, टमाटर, मक्का, बैंगन, नींबू व केला आदि फसलों में अपनाई जा सकती है ।
- इस विधि के प्रयोग करने से उगाई गई फसलों का उत्पादन उच्च गुणवत्ता वाला होता है क्योंकि पौधों की जड़ों को उत्तम जल, वायु व भूमि का अनुकूल वातावरण प्राप्त होता है ।
- सिंचाई जल की मात्रा को सरलतापूर्वक नियन्त्रित किया जा सकता है ।
- इस विधि से सम्पूर्ण खेत में सिंचाई जल का समान वितरण सम्भव होता है तथा जड़ क्षेत्र में क्षेत्रधारिता के बराबर नमी रखने में आसानी होती है ।