गेहूं, धान, मक्का इत्यादि फसलों की क्रांतिक अवस्थाएं एवं सिंचाई जल की आवश्कता

फसल एवं पेड़ पौधों की वृद्धि के लिए सिंचाई जल की आपूर्ति करनी आवश्यक होती है वृद्धि की इन अवस्थाओं को क्रांतिक अवस्थाएं (critical stages in hindi) कहते हैं ।

फसलों की क्रांतिक अवस्थाएं किसे कहते है?

फसल में पौधों की वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं में सिंचाई जल की आपूर्ति करनी आवश्यक होती है वृद्धि की यह अवस्थाएं फसलों की क्रांतिक अवस्थाएं (critical stages of crops in hindi) होती है ।


निम्न फसलों की सिंचाई की आवश्कता, उपयुक्त समय एवं सिंचाई की विधि लिखिए?


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1. गेहूं की फसल की क्रांतिक अवस्थाएं

गेहूँ की फसल के लिए 30-40 सेमी० जल की आवश्यकता होती है । वर्तमान समय में गेहूँ की अधिक उपज देने वाली बौनी जातियाँ उगाने के लिए सिंचाई जल की आवश्यकता बढ़ी है । इन जातियों को उगाने के लिए 5-6 सिंचाईयाँ आवश्यक होती हैं । शरद् ऋतु में वर्षा होने से सिंचाईयों की संख्या कम की जा सकती है ।


गेहूँ की क्रांतिक अवस्थाएँ जिन पर सिंचाई करना आवश्यक होता है निम्न प्रकार हैं -

  • CRIS ( Crown Root Initiation Stage ) → 20-25 DAS
  • TS ( Tillering Stage ) → 40-45 DAS
  • JS ( Jointing Stage ) → 55-60 DAS
  • FS ( Flowering Stage ) → 85-90 DAS
  • MS ( Milking Stage ) → 100-105 DAS
  • DS ( Dough Stage ) → 115-120 DAS

पौधे की वृद्धि की सभी अवस्थाओं में CRI अवस्था सबसे महत्वपूर्ण है । इन अवस्थाओं में किसी एक अवस्था पर सिंचाई न करने से 10-12 क्वि/है० तक उपज में कमी आ जाती है ।


गेहूं की फसल की प्रमुख तीन क्रांतिक अवस्थाएं -

  1. यदि किसान के पास एक सिंचाई का प्रबन्ध है तो गेहूं की फसल में यह सिंचाई केवल (CRI) अवस्था पर ही करनी चाहिए ।
  2. यदि दो सिंचाईयों की व्यवस्था है तो CRI व (tillering stage) पर करनी चाहिए ।
  3. यदि तीन हैं तो (CRI, Tillering a Milking Stage) पर होनी चाहिए ।


2. गन्ने की फसल की क्रांतिक अवस्थाएं

गन्ने की फसल में सिंचाईयों की संख्या जलवायु, भूमि की किस्म, बुवाई की विधि, खाद एवं उर्वरकों की मात्रा द्वारा निर्धारित होती है । मई - जून के महीनों में गर्म मौसम व तेज हवाओं के चलने के कारण फसल की जल माँग बढ़ जाती है । खाईयों में बोई गई फसल पानी की कमी को भी सहन कर उगने की क्षमता रखती है । अधिक मात्रा में प्रयोग किये गये खाद व उर्वरक फसल की जल माँग को बढ़ा देते हैं ।

गन्ने की फसल के लिए वर्षा जल के अतिरिक्त 2000 मिमी. सिंचाई जल की आवश्यकता होती है । फसल की बुवाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है ।

बुवाई के 25-30 दिन के पश्चात् लगभग 1/3 अंकुरण (germination) हो जाता है । इस समय पर फसल की प्रथम सिंचाई करनी चाहिए ।

तत्पश्चात् 12-15 दिन के अन्तराल पर गर्मी के मौसम में सिंचाई करते रहना चाहिए । सर्दी के मौसम में सिंचाई का अन्तराल बढ़ जाता है अर्थात् एक माह के बाद सिंचाई करनी चाहिए ।

गन्ने के पौधों में कल्ले फूटने (tillering stage) एवं वृद्धि के समय अधिक जल की आवश्यकता होती है ।

उत्तरी भारत में गन्ने की फसल को उगाने के लिए 10-15 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है । गन्ने की फसल में पौधे का वानस्पतिक भाग उपज के रूप में प्रयोग किया जाता है ।

अतः फसल में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए । अंकुरण के समय खेत में भारी सिंचाई नहीं करनी चाहिए । बलुई व अन्य हल्की भूमियों में सिंचाई की बार - बार आवश्यकता होती है ।


3. धान की फसल की क्रांतिक अवस्थाएं

धान के पौधों के लिए भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है । इस फसल की जल की आवश्यकता 2500 मिमी. तक होती है । यह भूमि की किस्म, जलवायु एवं मृदा प्रबन्ध पर निर्भर करता है ।

सामान्यतः धान की फसल अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है । यदि किसी वर्ष वर्षा का अभाव हो या धान के पौधों के जीवनकाल में जल की कमी हो तो जल की आपूर्ति हेतु सिंचाई की व्यवस्था करना आवश्यक है वर्षा पर आधारित ऊँची भूमियों में धान की फसल की बुवाई सीधी खेत में कर दी जाती है । ऐसे क्षेत्रों में जहाँ पर की भूमि का धरातल ऊँचा होता है ।

धान की फसल पूर्ण रूप से वर्षा पर आश्रित रहती है । वर्षा की अनिश्चितता की कमी से फसल की उपज कम होती है । जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधाएँ उपलब्ध हैं वहाँ अधिक उपज देने वाली जातियों को उगाना चाहिए ।

सामान्यतः धान की फसल में प्रारम्भ से अन्त तक पानी की आवश्यकता बनी रहती है । किये गये शोध - परीक्षणों के निष्कर्ष के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कल्ले निकलने व फूल खिलने के समय खेत में जल का जमा रहना आवश्यक है । उसके पश्चात् खेत की मिट्टी को केवल नम रखना ही पर्याप्त है ।

ऐसी स्थिति में धान की फसल की उपज में वृद्धि होती है और सिंचाई दक्षता बढ़ जाती है । धान की फसल में अधिक गहरा जल भरना लाभकारी नहीं है क्योंकि अधिक जल भरने से पौधों में कल्लों (tillers) की संख्या घट जाती है और उपज में कमी आती है ।

धान की खेती जहाँ तक सम्भव हो भारी भूमि पर की जाए । यदि भूमि हल्की है तथा जल स्तर नीचा है तो कुछ दिन के लिए सिंचाई रोक देना पर्याप्त है ।


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4. मक्का की फसल की क्रांतिक अवस्थाएं

मक्का एक ऐसी फसल है जो न तो सूखा सहन कर सकती है और न जल की अधिकता । हमारे देश में लगभग 15% भाग में मक्का की खेती सिंचाई के ऊपर निर्भर करती है व शेष 85% क्षेत्रों में वर्षा के आधार पर ही मक्का की फसल उगाई जाती है ।

वर्षा का वितरण सामान्य होने पर मक्का की फसल के लिए 600 मिमी. वर्षा पर्याप्त होती है । मक्का के पौधे के लिए उसके सम्पूर्ण जीवनकाल में पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता बनी रहनी चाहिए ।

मक्का के पौधे पर झण्डा व भुट्टा बनने की अवस्थाओं में जल की कमी का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है । भुट्टा लगने व दाने के विकास की अवस्थाओं पर भी भूमि के जल की कमी होनी चाहिए ।

मक्का की सिंचाई की आवश्यकता फसल की किस्म, भूमि, वर्षा की मात्रा, वर्षा का वितरण व सिंचाई की मात्रा पर निर्भर करती है ।


5. चुकन्दर की फसल की क्रांतिक अवस्थाएं

चुकन्दर की फसल सूखे को सहन नहीं कर सकती । इस फसल को उगाने के लिए भूमि में पर्याप्त जल की आवश्यकता होती है । भूमि में अधिक जल भरने से फसल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । इस फसल की जल की आवश्यकता व सिंचाईयों की संख्या मौसमीय विभिन्नताओं, भूमि की किस्म व भूमि में जीवांश पदार्थ की मात्रा आदि कारकों पर निर्भर करती है ।


चुकंदर की फसल में सिंचाई की क्रान्तिक अवस्थाएँ -

  • Formative Stage
  • Leaf growth stage
  • Root development stage

सामान्यतः इस फसल को उगाने के लिए दो फसलों के बीच का अन्तराल लगभग 20 दिन का होना चाहिए । इस फसल की अधिकत उपज प्राप्ति हेतु 10-12 सिंचाईयों की व्यवस्था होनी चाहिए ।

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