शुष्क खेती क्या है इसकी परिभाषा एवं इसके लाभ व दोष

भारत के उन क्षेत्रों में शुष्क खेती (dry farming in hindi) की जाती है जहां 50 सेमी० से कम वर्षा होती है ।

शुष्क खेती (dry farming in hindi) भारत के लगभग एक तिहाई भूमि के भाग पर की जाती है ।


शुष्क खेती क्या है | dry farming in hindi

शुष्क खेती (dry farming in hindi) फसल उत्पादन की वह सुधरी प्रणाली है, जिससे किसी निश्चित भूमि पर वर्षा जल की अधिकतम मात्रा को सुरक्षित रखकर भरपूर उत्पादन किया जाता है ।

शुष्क खेती की परिभाषा | defination of dry farming in hindi 

विडटस् के कथनानुसार - “ऐसी भूमि में जहाँ वार्षिक वर्षा 20 इंच अथवा इससे कम हो, वहाँ बिना किसी सिंचाई के साधन के उपयोगी फसलों के आर्थिक उत्पादन को शुष्क खेती (dry farming in hindi) कहते हैं ।" 

"In such land where annual rainfall is 20 inches or less, the economic production of useful crops without any means of irrigation is called dry farming.

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शुष्क खेती (dry farming in hindi) क्या है इसकी परिभाषा एवं आवश्यकताएं लिखिए

शुष्क खेती के लाभ एवं दोष

वास्तव में, शुष्क खेती (dry farming in hindi) प्राकृतिक कारणों से विवश होकर करनी पड़ती है । इसमें किसी प्रकार की छाँट या चुनाव अथवा यह किसी अन्य प्रकार की खेती का विकल्प नहीं है ।

अत: शुष्क खेती तुलनात्मक लाभ अथवा दोष का प्रश्न ही नहीं उठता है । 

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शुष्क खेती की आवश्यकताएँ | dry farming requirements in hindi


शुष्क खेती (dry farming in hindi) की प्रमुख आवश्यकताएँ निम्नलिखित है -

  • रबी की फसलों की कटाई के बाद खेत की जुताई करना । ऐसा करने से वर्षा ऋतु का पानी भूमि द्वारा आसानी से सोख लिया जाता है ।
  • प्रत्येक वर्षा के बाद खेत की जुताई करना , जिससे खरपतवार नष्ट हो सकें और भूमि की भौतिक दशा में सुधार हो सकें ।
  • भूमि में अधिकाधिक मात्रा में जीवांश खादों का प्रयोग किया जाए, जिससे भूमि की जल - धारण क्षमता में वृद्धि हो सकें ।
  • ऐसी प्रजातियों के बीजो का प्रयोग किया जाए जो शुष्क खेती में आसानी से पैदा किया जा सकें ।
  • बीज की मात्रा कम और बुआई लाइनों में दूर - दूर तथा गहराई में करनी चाहिए ।
  • मिश्रित फसलें जैसे - ज्वार, अरहर या बाजरा - अरहर बोनी चाहिए ।
  • खेतों की मेड़बन्दी करनी चाहिए, जिससे वर्षा का अधिक से अधिक पानी खेत में रोका जा सके ।
  • ढलवाँ जमीनों पर जुताई, गुड़ाई इत्यादि की क्रियाएँ ढाल के विपरीत ही करनी चाहिए ।
  • खड़ी फसलों में उचित समय पर निराई गुड़ाई की क्रियाएँ करनी चाहिए ।
  • ऐसे यन्त्रों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो भूमि की ऊपरी सतह को तोड़ सकें । और वर्षा के तुरन्त बाद ही खेत में कार्य कर सकें ।

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