- जई का वानस्पतिक नाम (Botanical Name) - एवीना सेटाइवा (Avena sativa)
- जई का कुल (Family) - मिनी (Graminae)
- गुणसूत्र संख्या (Chromosomes) - 2n=
भारत में जई की खेती (ओट्स की खेती) एक पौष्टिक चारे वाली फसल के रूप में जानी जाती है ।
जई (oats in hindi) के हरे चारे में लगभग प्रोटीन 12 से 14 प्रतिशत माया जाता है । यह दुधारू पशुओं के लिए बरसीम व रिजका के साथ मिलाकर एक पौष्टिक चारे के रूप में प्रयोग की जाती है । जई का उपयोग पशुओं के लिए हे व साइलेज के रूप में भी किया जाता है ।
जई का उत्पत्ति स्थान एवं इतिहास
जई (oats in hindi) के उत्पत्ति स्थान के बारे में इतिहासकारों के विभिन्न मत हैं ।
मिश्र, चीन व अन्य एशियाई देशों में ओट्स की खेती प्राचीनकाल से ही की जा रही है । इसीलिए इसका जन्म स्थान एशिया महाद्वीप माना जाता है ।
भारत में जई की खेती (ओट्स की खेती) का आगमन लगभग सन् 1900 के आस - पास हुआ ।
जई का भौगोलिक वितरण
जई की खेती (jaee ki kheti) करने वाले प्रमुख देशों में अमेरिका, रूस, पोलैण्ड व कनाडा आदि हैं ।
भारत में जई की खेती उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब व राजस्थान आदि राज्यों में की जाती है ।
जई के पौधे का वानस्पतिक विवरण
जई का वानस्पतिक नाम Avena sativa है । इसका पौधा 'मिनी' (Graminae) परिवार से सम्बन्धित है । जई का पौधा एकवर्षीय (annual) होता है ।
जई (oats in hindi) पौधों की ऊँचाई 1 से 2 मीटर तक होती है । इसकी जड़ें अपस्थानिक होती हैं । इसका तना सीधा बढ़ने वाला, मुलायम व बेलनाकार होता है । जई के बीज पीले - भूरे रंग के होते हैं ।
जई की खेती के लिए उचित जलवायु
जई उत्तरी भारत में रबी के मौसम में चारे के लिए उगाई जाने वाली एक उत्तम फसल है ।
इसके पौधे अधिक ठण्ड के समय भी वृद्धि करते रहते हैं परन्तु अधिक गर्मी को इसका पौधा सहन नहीं कर पाता है । वर्षा और तेज हवा से इसके पौधों के गिरने का भय रहता है ।
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जई की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी एवं मिट्टी की तैयारी
जई की खेती (jaee ki kheti) के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है फिर भी ओट्स की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है । भूमि में जल - निकास की व्यवस्था होना आवश्यक है ।
जई की फसल (jaee ki fasal) की बुवाई के लिए खेत की मिट्टी को अन्य फसलों की भाँति बारीक एवं भुरभुरा बना लिया जाता है ।
जई की उन्नत प्रमुख किस्में
- UPO - 92
- UPO - 94
- केन्ट
- OS - 6
- OS - 7
- IGFRI - 2688 तथा IGFRI - 302 आदि ।
जई की खेती में फसल चक्र एवं मिलवां खेती
जई की फसल के कुछ प्रमुख फसल चक्र निम्न प्रकार है -
- मक्का - जई - लोबिया ( एकवर्षीय )
- ज्वार - जई - लोबिया ( एकवर्षीय )
- धान - जई - उड़द ( एकवर्षीय ) बरसीम व लुसर्न आदि फसलों के साथ जई की मिलवां खेती भी की जाती है ।
जई की खेती कब की जाती है?
उत्तरी भारत में जई की बोवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर व नवम्बर माह होता है । जई की बुवाई पंक्तियों में या छिटकवां विधि से जाती है ।
पंक्तियों में बुवाई करने पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी लगभग 20 सेमी० रखी जाती है । एक हैक्टेयर खेत की बुवाई के लिए 80-100 बीज की आवश्यकता होती है ।
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जई की खेती के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक की मात्रा
जई की फसल (jaee ki fasal) के लिए 60 किग्रा० नाइट्रोजन व 40 किग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से अन्तिम जुताई के समय भूमि में मिला देनी चाहिए ।
नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय व शेष आधी बुवाई के एक माह बाद खड़ी फसल में समान रूप से बिखेरकर तुरन्त सिंचाई कर देनी चाहिए ।
जई की खेती के लिए आवश्यक सिंचाई
जई की फसल (jaee ki fasal) के लिए खेत में बुवाई हेतु प्रथम सिंचाई पलेवा के रूप में की जाती है । अंकुरण के पश्चात् फसल की 20 से 25 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए ।
बीजोत्पादन के लिए उगाई गई जई की फसल की सिंचाई कल्ले निकलते समय (tillering stage) तथा फूल आते समय (flowering stage) पर अवश्य करनी चाहिए ।
जई की खेती में फसल की सुरक्षा
जई की फसल को हानि पहुँचाने वाला प्रमुख कीट दीमक (termite) है । इस पर नियन्त्रण के लिए - इस फसल की बुवाई के साथ लिण्डेन डस्ट की 20 किग्रा० मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में मिला देनी चाहिए ।
कण्डुआ रोग से भी फसल को हानि पहुँचती है । इस पर नियन्त्रण हेतु - बुवाई से पूर्व बीज को जिंक मैग्नीज कार्बामेट रसायन से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए ।
जई की फसल की कटाई कब की जाती है?
जब पौधे 50-60 दिन के हो जाते हैं तो चारे के लिए फसल की प्रथम कटाई की जा सकती है । इसके बाद बाली आने की अवस्था में अगली कटाई की जाती है ।
पहली कटाई में देरी नहीं करनी चाहिए । इससे पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । बीज की अच्छी उपज के लिए फसल की प्रथम कटाई के बाद फसल को बीज के लिए छोड़ देना चाहिए ।
जई की खेती से प्राप्त उपज
जई की फसल की दो कटाइयाँ करने से लगभग 400-500 क्विटल द्वारा चारा प्रति हैक्टेयर की दर से प्राप्त होता है ।
बीजोत्पादन हेतु उगाई गई फसल से 200-300 क्विटल हरा चारा तथा 15-16 क्विटल बीज और 16-20 क्विटल भूसा प्रति हैक्टेयर प्राप्त होता है ।