बाजरे की खेती (bajre ki kheti) कैसे करें | bajra ki fasal | Farming Study

  • बाजरे का वैज्ञानिक नाम क्या है? (Botanical Name) - (Pennisetumn Typhoides L.)
  • बाजरे का कुल (Family) - ग्रेमिनी (Gramineae)
  • बाजरे में गुणसूत्र संख्या - 2n = 14

एशिया व अफ्रीका महाद्वीपों में बाजरे की खेती (bajre ki kheti) मुख्य रूप से की जाती है, एवं बाजरा की फसल (bajra ki fasal) यहां की एक प्रमुख फसल है ।

बाजरा या "pearl millet" को गरीब के भोजन के नाम से भी जाना जाता है । बाजरे की फसल (bajra ki fasal) स्वभाव से कठोर फसल है एवं यह विपरीत परिस्थितियों में भी उगने की क्षमता रखती है ।

बाजरे की फसल (bajra ki fasal) हल्की या कम नमी वाली भूमि में भी उगाई जा सकती है । यह गर्म और खुश्क मौसम को भी सहन कर लेता है ।


बाजरे का जन्म कहाँ हुआ था? 

बाजरे का जन्म स्थान अफ्रीका महाद्वीप का गर्म मरूस्थलीय भाग माना जाता है । अधिक क्षेत्रफल पर बाजरे की खेती (bajre ki kheti) करने वाले प्रमुख देशों में चीन, भारत, पाकिस्तान, रूस व मिश्र आदि है ।


भारत में बाजरे की खेती सबसे ज्यादा कहाँ होती है?

बाजरा उत्पादक राज्य - भारत में बाजरा उगाने वाले राज्यों में राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात व उत्तर प्रदेश प्रमुख है ।


बाजरा उत्पादन में कौन सा राज्य प्रथम है?

भारत में बाजरा के उत्पादन एवं क्षेत्रफल में राजस्थान  राज्य का प्रथम स्थान है ।


बाजरे का वानस्पतिक विवरण

बाजरे के पौधे की ऊँचाई 1-3 मीटर के बीच होती है । फूल आने के 4-5 सप्ताह बाद इसकी फसल के दाने पककर तैयार हो जाते है । बीज का रंग हल्का पीला व नीला होता है ।


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बाजरे की खेती के लिए उचित जलवायु - क्षेत्र

बाजरा एक गर्म मौसम की फसल है, उत्तरी भारत में बाजरे की खेती (bajre ki kheti) खरीफ ऋतु में की जाती है ।

बाजरा की खेती (bajra ki kheti) 200-700 मिमी. वार्षिक वाले क्षेत्रों में की जाती है । यह ज्वार की अपेक्षा सूखे को अधिक मात्रा में सहन कर सकती है ।

पौधों की वृद्धि एवं बढ़वार के समय छोटी - छोटी वर्षा की बूंदों वाला नम मौसम अनुकूल रहता है । फूल आने के समय इस फसल के लिये वर्षा हानिकारक होती है क्योंकि वर्षा से परागकण धुल जाते है और दाने बहुत ही कम मात्रा में बन पाते हैं । इसके पौधे के लिये सफेद चमकदार धूप अच्छी रहती है ।

यदि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में तापमान अधिक हो जाये तो यह स्थिति बाजरे के लिये प्रतिकूल होती है । बाजरे की फसल (bajra ki fasal) को 28°C से 32°C तक तापमान की आवश्यकता होती है ।

तमिलनाडु, कर्नाटक व पंजाब राज्यों में सिंचाई वाले क्षेत्रों में बाजरे की खेती (bajre ki kheti) नीचे क्षेत्रों में नहीं की जाती । अधिक तापमान के कारण इसकी फसल जल्दी पकने लगती है, कम तापमान से इसके पौधे में अर्गट रोग लग जाता है ।


बाजरे की खेती कैसे की जाती है? | Bajre ki kheti?

बाजरे की आधुनिक खेती करके अधिक उपज लेने हेतु निम्न कृषि - क्रियायें अपनानी चाहिये -

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बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चुनाव

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बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चुनाव

ज्वार की तरह ही बाजरे की खेती के लिये बलुई दोमट व दोमट भूमि उचित रहती है । भूमि में पर्याप्त जल निकास होना चाहिये ।

मध्य भारत व दक्षिणी भारत की भूमियों में बाजरे की खेती (bajre ki kheti) कपास की काली मिट्टी में की जाती है । भारी भूमियों में भी इसकी खेती अच्छी होती है ।


बाजरे की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें?

बाजरे की खेती (bajre ki kheti) के लिये पहली फसल की कटाई के पश्चात् अप्रैल में मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई की जाती ।

तत्पश्चात् 2-3 बार खेत में हैरो चलाकर खेत की मिट्टी को बारीक व भुरभुरी बना लिया जाता है । खेत में उगे खरपतवारों को उखाड़कर जला देना चाहिये ।


बाजरे की खेती के लिए भूमि को समतल करना

बाजरे की खेती (bajre ki kheti) के लिये भूमि का समतल होना आवश्यक है । इस फसल के बीज छोटे होने के कारण मिट्टी का बारीक होना आवश्यक है ।


बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त जाति का चुनाव (बाजरे की वैरायटी)

बाजरे की देशी प्रजातियां ( Local Varieties ) -

  • बाजरा Improved
  • मैनपुरी
  • बाजरा 5530
  • बाजरा बाबापुरी व बाजरा फतेहाबादी आदि ।


बाजरे की संकर प्रजातियां (हाइब्रिड बाजरा) -

  • HB - 1
  • HB - 2
  • HB - 3
  • HB - 4
  • HB - 5
  • HB - 10
  • PHB - 14
  • New hybrid - 5
  • पूसा -322
  • ICMH - 451 व RHB - 58 आदि ।


बाजरे की संकुल प्रजातियां ( Composite Varieties ) -

  • ICMV - 155
  • WCC - 75
  • ICTP - 8203 तथा R - 171 आदि ।


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बाजरा की खेती कब होती है?

बाजरे की बुवाई का समय - खरीफ ऋतु में बोये जाने वाली बाजरे की फसल के लिये 15 जौलाई से 21 जौलाई तक का समय उपयुक्त रहता है ।


बाजरे की (प्रति हैक्टेयर) बीज दर कितनी होती है?

बाजरे का बीज आकार में छोटा होता है । एक हैक्टेयर खेत के लिये 4-5 किग्रा. बीज को बिखेरकर बुवाई की जा सकती है । यदि खेत की बुवाई डिबलर विधि से की जाती है तो 2.5-3 किग्रा०/हैक्टेयर बीज ही पर्याप्त रहता है ।


बाजरे की खेती में अन्तरण की दूरी कितनी होती है?

बाजरे की फसल हल के पीछे कुंडों में 45 समी० की दूरी पर पंक्तियों में बोई जाती है । फसल उगने के बाद पौधों की छंटाई कर एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 15 सेमी. तक बना लेनी चाहिये ।


बाजरे के बीज कीबु वाई की गहराई

बाजरा की फसल का बीज छोटा होने के कारण 2 से 2.5 सेमी० की गहराई पर बोना उचित रहता है । इससे अधिक गहराई पर बुवाई करने से अंकुरण कम होता है ।


बाजरे के बीज का उपचार

बुवाई के लिये बाजरे के बीज सैरेसन या एप्रोसन जी. एन. की 3 ग्राम मात्रा एक किग्रा. बीज में मिलाकर उपचारित कर लेने चाहिये ।


बाजरे की जैविक खेती (जैविक खाद एजेटोबैक्टर का प्रयोग)

बाजरे की बुवाई के समय जैविक खाद एजेटोबैक्टर का प्रयोग करने से एक हैक्टेयर खेत में 20 किग्रा नाइट्रोजन की वृद्धि होती है तथा फसल की उपज लगभग 10% बढ़ जाती है ।


बाजरे की बुवाई की विधि

बाजरे की फसल की बुवाई छिटकवां विधि से, हल के पीछे कुंडों में या डिबलर से की जा सकती है । इसके अतिरिक्त रोपण विधि से भी फसल को कुछ विशेष परिस्थितियों जैसे वर्षा कारण जलभराव की स्थिति में उगाया जा सकता है ।


एक हैक्टेयर क्षेत्रफल में बाजरे के पौधों की संख्या कितनी होनी चाहिए?

एक हैक्टेयर खेत में सिंचित क्षेत्रों में 1,70,000 से 2,00,000 तक पौधे होने चाहिये, जबकि असिंचित क्षेत्रों में पौधों की संख्या 1,50,000 तक निर्धारित कर लेनी चाहिये ।


बाजरे की बुवाई की किस दिशा में करनी चाहिए?

बाजरे की फसल की बुवाई पूर्व से पश्चिम दिशा में पंक्तियों में की जानी चाहिये ।


बाजरे में अपनाए जाने वाले उपयुक्त फसल चक्र कोन से है?

असिंचित क्षेत्रों में बाजरे की फसल गेहूँ, चना, मटर आदि फसलों के साथ फसल चक्रो में सम्मिलित की जाती है ।


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बाजरे में मिलवां खेती कैसे करें?

बाजरे के साथ मूंगफली , मूंग , तिल आदि खरीफ की अनेक फसलें मिलाकर मिलवां खेती की जा सकती है ।

बाजरे की खेती (bajre ki kheti) के लिए आवश्यक खाद तथा उर्वरक की मात्रा बाजरे की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये 5-10 टन/है. गोबर की सड़ी गली खाद बुवाई से 30 दिन पूर्व मिला देनी चाहिये । मिट्टी परीक्षण के पश्चात् उर्वरकों की मात्रा निर्धारित करनी चाहिये ।

सामान्यतः बाजरे की फसल (bajre ki fasal) के लिये 120 किग्रा० नाइट्रोजन, 80 किग्रा. फॉस्फोरस व 40 किग्रा० पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग किया जाता है । इसके अतिरिक्त 2-3 किग्रा. जिंक सल्फेट का खड़ी फसल में एक हैक्टेयर खेत में छिड़काव करना चाहिये ।


बाजरे की खेती में विरलीकरण

इस फसल में बुवाई के 3 सप्ताह बाद अवांछित पौधों की छटाई कर उनको निकाल देना चाहिये ।


बाजरे की खेती में जल प्रबन्ध

सिंचित क्षेत्रों में फसल की बुवाई से पूर्व एक सिंचाई पलेवा के रूप में की जाती है । तत्पश्चात् सिंचाइयों की संख्या वर्षा के ऊपर निर्भर करती है । यदि वर्षा न हो तो 2-3 सिंचाइयाँ करनी आवश्यक है । बाजरे की फसल के लिये 250 से 30 मिमी. जल की आवश्यकता होती है ।


बाजरे की खेती में जल निकास

इस फसल को उगाने के लिये भूमि में पर्याप्त जल निकास की व्यवस्था होनी आवश्यक है


बाजरे की फसल में लगने वाले खरपतवार एवं उनका नियंत्रण ‌कैसे करें?

खरपतवारों को नियन्त्रित करने के लिये खुरपी या कल्टीवेटर की सहायता से निराई करनी चाहिये ।


बाजरा में खरपतवार की दवा

इसके अतिरिक्त 2, 4 - D रसायन आधा से एक किग्रा. मात्रा को 600 ली. पानी में घोलकर प्रयोग करने से खरपतवारों को नष्ट किया जा सकता है ।


बाजरे की फसल में लगने वाले कीट एवं रोग

बाजरे की फसल की अधिक उपज लेने के लिये उगने वाले पौधों की वृद्धि एवं स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिये । इसके लिये रोगों व कीटों पर नियन्त्रण करना आवश्यक है । इस फसल में लगने वाले रोगों में अर्गट रोग, किट रोग, हरित बाली रोग व कण्ड रोग प्रमुख हैं । 

इस फसल को हानि पहुँचाने वाले कीटों में दीमक, तना मक्खी, तना बेधन व मिज आदि हैं । समय रहते सभी रोगों व कीटों पर नियन्त्रण करने के लिये उपाय आवश्यक हैं ।


बाजरे की खेती से प्राप्त उपज

बाजरे की उन्नत आधुनिक विधियों को अपनाकर हम बाजरे की खेती (bajre ki kheti) से अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है ।

  • 30 से 40 क्विटल दाने की उपज/हैक्टेयर प्राप्त कर सकते है ।
  • 60 से 100 क्विटल/हैक्टेयर कड़वी की उपज प्राप्त होती है ।
  • 500 - 600 क्विटल/हैक्टेयर हरा चारा प्राप्त होता है ।


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