टमाटर की खेती कैसे करें? | tamatar ki kheti | Farming Study

  • टमाटर का वैज्ञानिक नाम (Botanical Name) - लाइकोपर्सीकोन एसकुलेन्टम (Lycopersicon Esculantum)
  • टमाटर का कुल (Family) - सोलेनेसी (Solanaccac)
  • गुणसूत्र संख्या (Chromosomes) - 2n=24

16 वीं शताब्दी के प्रारंभ में स्पेनिश अन्वेषकों द्वारा टमाटर को यूरोप में लाया गया था। यूरोपियन लोगों द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा में टमाटर की खेती (tamatar ki kheti) का प्रवेशन हुआ ।

भारत में टमाटर पुत्र गालियों द्वारा लाया गया था हालांकि इसके समय का ठीक नीचे नहीं है ।


टमाटर की खेती | tamatar ki kheti

वर्तमान समय में भारत में टमाटर की खेती (tamatar ki kheti) लगभग 36,000 में की जाती है । आज के समय में सब्जियों में टमाटर की फसल (tamatar ki fasal) अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है ।


टमाटर का जन्म स्थान

टमाटर का जन्म स्थान दक्षिण अमेरिका के पीरु तथा बोलीविया को माना जाता है ।


टमाटर का वानस्पतिक विवरण

टमाटर सोलेनेसी (Solanaceae) कुल का पौधा है । इसकी प्रजाति 'Lycopersicon' है । इसकी बहुत सी जातियां है ।

परन्तु 'esculantum' खाने योग्य फल उत्पन्न करती है, दूसरी छोटे फलों वाली जाति 'pimpinellifoliun' प्रजनन के लिये उपयोगी है ।


टमाटर की खेती के लिए उचित जलवायु

टमाटर गर्म मौसम की फसल है, यह ठंडी जलवायु में भी हो सकती है परंतु यह पाला सहन नहीं करती है ।

टमाटर की फसल (tamatar ki fasal) के लिए 18 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस तक तापमान उपयुक्त रहता है । टमाटर की वृद्धि के लिए दैनिक औसत तापमान 21 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तक उपयुक्त होता है ।


टमाटर में लाल रंग का क्या कारण होता है?

टमाटर की फसल (tamatar ki fasal) में तापमान तथा प्रकाश की सघनता फल बनने को प्रभावित करती है, इससे फलों में लाल रंग लाइकोपीन का विकास भी प्रभावित होता है ।

टमाटर का लाल रंग लाइकोपीन (Lycopene) के कारण ही होता है । टमाटर के फलों का पोषक मान भी काफी हद तक प्रभावित होता है ।


टमाटर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

टमाटर की खेती (tamatar ki kheti) के लिये हल्की दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है ।

मृदा वातन (Soil aeration) एवं जल निकास अच्छा होना चाहिए । अम्लीय भूमि टमाटर की खेती (tamatar ki kheti) के लिये अच्छी नहीं होती है इसलिए अम्लीयता होने पर भूमि में चूना मिलाना लाभप्रद होता है । टमाटर के लिये मृदा pH 6-0 से 7-0 सर्वोत्तम होता है ।

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टमाटर की किस्में | tamatar ki kisme

भारत में टमाटर की बहुत सी किस्में में प्रचलित है, जिसमें मुख्य रुप से हाइब्रिड किस्में उगाई जाती है ।

टमाटर की प्रमुख किस्में - 

  • पूसा रुबी
  • पूसा अर्ली डवारफ
  • बैस्ट ऑफ ऑल
  • सोयू (Sioux)
  • मारग्लोब
  • फायर बाल
  • SI 120 इटेलियन रैड
  • पियर
  • रोमा
  • T1
  • पोन्डेरोसा
  • प्रिचारड
  • आक्स हार्ट
  • डेविलिनम्
  • चायस
  • देशी डिक्सन
  • Pb 12
  • रैड कलाउड
  • वरल्ड बीटर सटेन्स परफैक्शन
  • सटेन्स गोल्डन क्वीन प्रौसपैरिटी
  • पान अमेरिकन
  • मेरटी
  • गैमेड
  • SL 152
  • स्वीट 72 S. 12
  • H.S. 102 एवं H.S. 101 आदि ।


टमाटर की हाइब्रिड किस्में

टमाटर में संकर ओज (hybridvigour) भी पायी जाती है ।

पूसा रुबी तथा बैस्ट आफ आल की F1 हाईब्रिड की इनके पित्रज से 20% तक अधिक उपज होती है । टमाटर में हाईब्रिड उत्पन्न करने का व्यापक क्षेत्र है ।

हाइब्रिड टमाटर की किस्में -

  • सदाबहार
  • प्रिति
  • गुलमोहर सोनाली इत्यादि संकर किस्में है ।


टमाटर की बीज दर कितनी होती है?

एक ग्राम भार में लगभग 300 बीज होते है । एक हैक्टर के लिए लगभग 400 ग्राम बीज काफी होता है ।


टमाटर की नर्सरी

अच्छी प्रकार से तैयार की गई नरसरियों में बीज बोया जाता है ।

इसके लिये 6 इंच ऊपर उठी, 3 फीट चौड़ी तथा 6 फीट लम्बी क्यारियां तैयार की जाती है, मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए । मिट्टी के ऊपर एक इंच मोटी तह सड़ी हुई बारीक गोबर की खाद डालकर अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिए ।


टमाटर की खेती कब करें?


टमाटर की नर्सरी में बीज बोने के समय निम्न प्रकार है -

( अ ) उत्तरी भारत में टमाटर की दो बार बुवाई की जाती है -

  • शरद् - शिशिर फसल (Autumn - Winter crop) के लिए बीज जून - जौलाई में बोया जाता है ।
  • बसन्त - ग्रीष्म फसल (Spring - Summer crop) के लिए बीज नवम्बर में वोया जाता है ।

( ब ) देश के उन भागों में जहां पाला नहीं पड़ता है, वहाँ पर बीज की बुवाई केवल एक बार जौलाई - अगस्त में की जाती है ।

( स ) पहाड़ी क्षेत्रों में बीच मार्च - अप्रैल में बोया जाता है ।


टमाटर की पौध कब एवं कैसे लगाई जाती है?

टमाटर के पौधे 4-5 सम्ताह के बाद रोपने योग्य हो जाते है । इस समय तक पौधों की लम्बाई लगभग 10 सेमी. हो जाती है तथा वे काफी सख्त हो जाते है ।

पौधों को अधिक सख्त बनाने के लिये (hardening) बीच - बीच में कभी सिंचाई रोक देते है, जिससे कि वे खुले मौसम के अनुकूल हो जायें ।


टमाटर के पौधों में कितना फासला रखा चाहिए?

  • शरद् - शिशिर फसल के लिए - 75 x 60 से. मी.
  • बसन्त - ग्रीष्प फसल के लिए - 75 x 45 से. मी. रखा जाता है ।


टमाटर की खेती के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक की मात्रा

टमाटर को जल्दी मिलने वाले पोषण तत्वों की आवश्यकता पड़ती है । टमाटर की फसल (tamatar ki fasal) को लगभग 75 कि० ग्रा० नत्रजन (N), 60 कि. ग्रा. फास्फोरस (P) तथा 80 कि० ग्रा० पोटाश (K) की आवश्यकता पड़ती है ।

इस आवश्यकता की पूर्ति निम्न प्रकार से करनी चाहिये -

  • खेत की तैयारी के समय 20 से 25 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टर अच्छी प्रकार मिट्टी मे मिला देनी चाहिये ।
  • 125 कि० ग्रा० अमोनियम सल्फेट, 80 कि० ग्रा० पोटेशियम सल्फेट तथा 250 कि० ग्रा० सिंगल सुपर फास्फेट पोध रोपण के समय पौधों की जड़ों के पास डालनी चाहिये ।
  • लगभग एक माह पश्चात 125 कि० ग्रा० अमोनियम सल्फेट का (topdressing) कर देना चाहिये ।
  • टमाटर की खेती (tamatar ki kheti) के लिए उर्वरकों के घोल का पौधों पर छिड़काव लाभप्रद साबित हुआ है । इसके लिए 40 कि० ग्रा० फास्फोरस का घोल के रूप में 3, 4 बार छिड़काव किया जा सकता है ।


टमाटर की खेती के लिए आवश्यक सिंचाई

टमाटर की खेती (tamatar ki kheti) के लिये निश्चित तथा उचित समय पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है ।

क्योंकि सिंचाई की कमी तथा अधिकता दोनों ही पौधों के लिये घातक है । पौधों की आवश्यकता के अनुसार ही पानी देना चाहिये । स्टेक (Staked) वाली फसल को प्रति -5 से 7 दिन बाद सिंचाई करनी चाहिये । जमीन की फसल (Ground crop) प्रति 10 दिन के बाद सिंचाई करनी चाहिए ।


टमाटर की खेती में निराई गुड़ाई

नयी लगायी गई फसल की प्रत्येक सिंचाई के बाद खुपी अथवा हैन्ड हो (Hand hoe) में हल्की निराई करनी चाहिये, जिससे ऊपर की भूमि भुरी - भुरी हो जाये तथा खरपतवार समाप्त हो जायें । नमी बनाये रखने के लिये घास फूस अथवा काली पोलीथिन से मल्चींग (mulching) करना लाभप्रद प्रमाणित हुआ है ।


टमाटर में काट - छाँट एवं ट्रेनिंग कब एवं कैसे की जाती है?

अगेती फसल लेने के लिये अक्सर स्टेकिंग (staking) किया जाता है । एक तने पर अधिकतर स्टेकिंग किया जाता है । पार्श्व अक्ष (lateral avis) को चुनकर तोड़ दिया जाता है ।

टमाटर में ट्रेनिंग की गई फसल व्यावसायिक रूप से नहीं उगायी जा सकती है, क्योंकि खर्च तथा श्रम अधिक लगता है । आपेक्षित उपज भी अधिक नहीं होती है ।

स्टेक की गयी फसल के फलों पर सूर्य का प्रकाश सीधा पड़ता है, जिससे उन पर सूर्य जलन (sun burning) के चक्कते पड़ जाते हैं तथा फल खराब हो जाते है ।


टमाटर में फल न आना एवं इसके उपाय

टमाटर में फल लगाना एक गम्भीर समस्या है यह समस्या बसन्त - ग्रीष्म फसल में, बसन्त के आरम्भ में कम तापक्रम (13°C से कम) की वजह से होती है तथा शरद - शिशिर फसल में, शरद के प्रारम्भ में अधिक तापक्रम (38°C से अधिक) के कारण होती है ।

इसमें फूल झड़ जाते है तथा फल नहीं लगते है । इस समस्या का समाधान पादप नियमकों (plant regulators) के छिड़काव से किया जा सकता है ।

उपाय -

पैरा - क्लोरोफिनोक्सी एसीटिक एसिड 15-20 ppm., 2-4D, 1-2 ppm. जीबेलीक एसिड प्रभावकारी साबित हुए है ।


टमाटर के फलों की तुड़ाई कब करनी चाहिए?

उचित आकार व परिपक्वता के फलों की लगातार तुड़ाई की आती है । फलों को तोड़ने की अवस्था का निर्धारण फलों के उपयोग तथा स्थानान्तरण 50 ppm (transport) की दूरी के आधार पर किया जाता है ।

जहाजों में लदान के लिये पूर्ण विकसित हरे फल तोड़े जाते है । कम दूरी पर भेजने के लिये अर्धपरिपक्व फल तोड़ते है । डिब्बा - बन्दी (canning) के लिये पूर्ण परिपक्व फल तोड़े जाते है ।


टमाटर की खेती से प्राप्त उपज

16 से 24 टन प्रति हैक्टर उपज हो जाती है ।


टमाटर के फलों का श्रेणीकरण

भारतीय मानक संस्थान (Indian Standard Institution - ISI) के द्वारा इसकी निम्न चार श्रेणी मान्य है -

  • सुपर ए (Super A)
  • सुपर (Super)
  • फैन्सी (Fancy)
  • कामर्शियल (Commercial)


टमाटर के फलों का भण्डारण

टमाटर का सर्वोत्तम संग्रह 12-15°C पर होता है । परिपक्व हरे फलों को 10-15°C पर एक माह तक रखा जा सकता है ।

पूर्ण परिपक्व फलों को 4.5°C पर दस दिन तक रखा जा सकता है । हिमाँक (Freezing point) पर रखने से निम्न तापीय धाव (low temperature injury) उत्पन्न हो जाती है ।


टमाटर में लगने वाले कीट एवं रोगों का नियंत्रण कैसे करें?

भारत में टमाटर सब्जी के रूप में उपयोग की जाने वाली एक महत्वपूर्ण फसल है, परंतु टमाटर में लगने वाले कीट एवं रोग (tamaatar ke keet aur rog) की संख्या अधिक होती है, जिनका नियंत्रण करना अति आवश्यक होता है ।

टमाटर की फसल में बहुत से कीट एवं रोग आक्रमण करते हैं, जो टमाटर की खेती (tamatar ki kheti) को काफी नुकसान पहुंचाते हैं जिससे पैदावार में काफी गिरावट देखने को मिलती है । टमाटर में मुख्यतः कीट, रोग (कवक रोग, बैक्टीरिया रोग, विषाणु रोग) तथा इसके अलावा टमाटर के कुछ शारीरिक विकार भी है ।

टमाटर में लगने वाले कीट एवं  रोगों का नियंत्रण कैसे करते है? | Farming Study
टमाटर में लगने वाले कीट एवं रोगों का नियंत्रण कैसे करते है

टमाटर की फसल में लगने वाले कीट तथा उनका नियन्त्रण

टमाटर की फसल को बहुत से कीट (Insect) नुकसान पहुंचाते हैं ।

टमाटर में लगने वाले प्रमुख कीट -

  • टोबैकों कैटरपिलर (Tobacco Caterpillar)
  • टमाटर के फल कीट (Tomato Fruit Worm)
  • इपीलैकना बीटिल (Epilachna Beetle)
  • जैसिड्स (Jacids)
  • दीमक (Termite)


इनमें से प्रमुख कीटों की उनकी नियन्त्रण विधि के साथ नीचे वर्णन किया गया है -

1. टमाटर का टोबैकों कैटरपिलर कीट ( Tobacco Caterpillar ) -

ये काले - भूरे रंग के मजबूत कैटरपिलर होते हैं । ये पत्तियों, फलों एवं फूलों को खा जाते हैं ।

इसके नियन्त्रण के लिए -

इनके अण्डों के समूह तथा कैटरपिलर को एकत्र कर जला देना चाहिये । एनड्रीन का दो सप्ताह के अन्तर से छिड़काव करना चाहिये ।

2. टमाटर का फल कीट ( Tomato Fruit Worm ) -

यह अत्यधिक हानिकारक कीट है । इसके कैटरपिलर पत्तियों तथा अन्य कोमल भागों को खा जाते हैं । फलों को काटकर उनमें छेद कर देते हैं ।

इसके नियन्त्रण के लिए -

प्रभावित भागों को एकत्र कर जला देना चाहिये । D.D.T. के 0.1 % घोल का दिन के अन्तर से छिड़काव करना चाहिये ।

3. टमाटर का इपीलैकना बीटिल कीट ( Epilachna Beetle ) -

इनके लारवा तथा कीट (adults) पत्तियां खा जाते हैं ।

इसके नियन्त्रण के लिए -

लारवों तथा कीटों को पकड़ कर मार देना चाहिये । D.D.T. के 0.1% घोल का छिड़काव करते रहना चाहिये । इसके अलावा जैसिड्स तथा दीमक भी टमाटर की फसल (tamatar ki fasal) को नुकसान पहुँचाती हैं ।


टमाटर की फसल में लगने वाले रोग एवं उनका नियंत्रण

टमाटर में कई प्रकार के रोग लगते हैं, टमाटर के पौधे एवं फल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं ।

टमाटर की फसल में मुख्यतः तीन प्रकार के रोग लगते हैं -

1. टमाटर के कवक जनित रोग (Fungal Disease)

  • आर्द्रगलन रोग
  • फूजेरिअम विल्ट रोग
  • अगेती झुलसा रोग
  • पछेता झुलसा रोग
  • पति फफूंदी रोग

2. टमाटर के बैक्टीरिया जनित रोग (Bacterial Disease)

  • बैक्टीरियल कैन्कर

3. टमाटर के विषाणु जनित रोग (Virus Disease)

  • लीफ कर्ल
  • मौजेक
  • फर्न लीफ


टमाटर में लगने वाले कवक जनित रोग एवं उनका नियंत्रण

( 1 ) टमाटर का आर्द्रगलन रोग ( Damping off ) -

यह पीथियम डैबरियानम (Plhythium debryanum) कवक से उत्पन्न होता है । ये रोग नरसरी बीजांकुर अथवा कोमल पौधों में लगता है ।

रोग जड़ तथा तने के जोड़ के स्थान पर लगता है, वहां की पोषक पत्तियों की मृत्यु के कारण स्थान कोमल, निर्बल एवं आर्द्रयुक्त हो जाते हैं, पौधे गिर जाते हैं तथा अन्ततः मर जाते हैं ।

इसके नियन्त्रण के लिए -

  • नरसरी का, भाप (steam) फारमेलीन या कोपर फन्जीसाइड से जीवाणु नाशन (Sterlization) करना चाहिये ।
  • बीजों को बोने से पहले सैरेसन या एप्रोसन से उपचारित कर लेना चाहिये ।


( 2 ) टमाटर का फूजेरिअम विल्ट रोग ( Fuasarium Will ) -

फूजेरियम जातियों (Fuasarium spp.) की कवकों से उत्पन्न होता है । इस रोग से पत्तियां पीली पड़ जाती है, उसके बाद पौधा मुरझा जाता है तथा अन्तत: मर जाता है ।

इसके नियन्त्रण के लिए -

  • स्वस्थ पौधों से बीज लेना चाहिये ।
  • लग्बे फसल चक्र (long crop rotation) प्रयोग करने चाहिये ।
  • रोग - अवरोधी ( disease resistant ) वैरायटी, जैसे मारग्लोब, रुटगर पीचार्ड, मैनेलुसी बोनी चाहिये ।


( 3 ) टमाटर का अगेता झुलसा रोग ( Early Blight ) -

आल्टरनेरिया सोलेनाई (Alternaria solani) कवक से उत्पन्न होता है । इससे पत्तियों तथा हरे फलों पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं । फल गिरने लगते हैं तथा पौधा मर जाता है ।

टमाटर के अगेता झुलसा रोग की दवा -

  • स्वस्थ बीज बोने चाहिये ।
  • कापर फन्जीसाइड से बीजों को उपचारित करके बोना चाहिये ।
  • बोर्डो मिश्रण या बरगन्डी मिश्रण का खडी फसल पर छिडकाव करना चाहिये ।


( 4 ) टमाटर का पछेता झुलसा रोग ( Late Blight ) –

यह रोग फाइटोप्थोरा इन्फेसटान्स (Pirytopt/hora infestans) कवक से उत्पन्न होता है । इससे पत्तियाँ, तना तथा फल प्रभावित होते हैं । इन पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं तथा सड़न होने लगती है ।

टमाटर के पछेता झुलसा रोग की दवा -

  • बोर्डो मिश्रण या बरगन्डी मिश्रण का छिड़काव करना चाहिये ।
  • कापर लाइम (Copper lime) की बुरकन (dusting) भी प्रभावकारी होती है ।


( 5 ) टमाटर का पत्ती फफूंदी रोग ( Leaf mould ) -

यह रोग क्लेडोस्पोरियम फल्वम (Cladosporium fitvant) कवक से उत्पन्न होता है । इससे पत्तियों की ऊपरी सतह पर हरे - हरे भूरे धब्बे पड़ जाते हैं । नम स्थानों में यह अधिक होती है । वैटामोल्ड इसकी अवरोधी वैराइटी है ।


टमाटर का बैक्टीरिया से उत्पन रोग एवं उसका नियंत्रण

( 1 ) टमाटर का बैक्टीरियल कैन्कर रोग ( Bacterial Canker ) –

यह रोग Corynebacterum spp. उत्पन्न होता है । इसमें तने के अन्दर गहरे भूरे रंग की धारियाँ प्रतीत होती हैं तथा फलों के अन्दर पीले रंग की धारियाँ बन जाती हैं । 

ये रोग बीज तथा भूमि जनित है । इसलिये प्रभावित पोधों को उखाड़कर जला देना चाहिये तथा लम्बे फसल चक्र अपनाने चाहिये ।


टमाटर के विषाणु जनित रोग एवं उनका नियंत्रण

( 1 ) टमाटर का लीफ कर्ल रोग ( Leaf Curl ) -

इस रोग में पत्तियाँ ऐंठ कर घूम जाती हैं, छोटी रह जाती है तथा गिरने लगती हैं । पोधों की वृद्धि रुक जाती है । प्रभावित पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए ।


( 2 ) टमाटर का मौजेक रोग ( Mosaic ) -

यह TMV (Tobacco Mosaic Virus) से फैलता है । इस रोग में पत्तियों पर रंगहीन चक्कते (chlorotic blotchs) पड़ जाते हैं । ये पत्तियां पीली पड़ जाती है । बीच - बीच में हरे भाग रहते हैं । प्रभावित पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिये ।


( 3 ) टमाटर का फर्न लीफ रोग ( Fern leaf ) -

इस रोग में पत्तियों का आकार फर्न जैसा हो जाता है । अधिक रोग में केवल मध्य शिरा शेष रह जाती है, यह “Cucumber Mosaic Virus" से उत्पन्न होता है तथा अफीड्स द्वारा फैलता है ।

इसलिये अफीड्स पर नियन्त्रण के लिये कीट नाशकों (Insecticides) का उपयोग करना चाहिये तथा रोगी पोधों को उखाड कर जला देना चाहिये ।


टमाटर का मूल ग्रन्थि रोग क्या होता है? 

टमाटर का मूल ग्रन्थि (Root knot of Tomato) -

ये रोग निमटोड (Nematods) मैलेइडोगाइन जातियों (Meloidogyne spp.) से उत्पन्न होता है । पौधे की जड़ों में गांठे बन जाती हैं । गाँठ अलग - अलग अथवा जंजीर के रूप मे होती हैं ।

ये गोल अथवा लम्बे आकार की होती हैं । इनसे पौधे बौने रह जाते हैं, पत्तियां छोटी तथा पीली हो जाती है, अन्ततः पौधा सूख जाता है ।

इसके नियन्त्रण के लिए -

  • लम्बे फसल चक्र अपनाने चाहिये ।
  • स्वच्छ कृषि प्रणाली अपनानी चाहिये ।
  • रोग अवरोधी वैराइटी बोनी चाहिये ।
  • भूमि धुमीकरण (soil fumigation) करना चाहिये ।
  • नेमेटोसाइड, जैसे निमेजन, DD, जाइनोफोस तथा मिथाइल ब्रोमाइड से भूमि का प्रचरण करना चाहिये ।


टमाटर की शारीरिक विकार

शरीर - क्रियात्मक अनियमितायें (Physiological Disorders) -

( 1 ) पफ ( Puff ) –

इसमें फल हल्के रह जाते हैं । ये अन्दर से खाली निकलते हैं ।

( 2 ) कैटफेंस ( Cat face ) -

फलों पर झुर्रियां एवं दांतें पड़ जाते हैं जिससे फल बिल्ली के मुँह के समान प्रतीत होता है ।

( 3 ) सूर्य जलन ( Sun scandling ) –

फलों पर सूर्य के तेज प्रकाश से जलन के धब्बे पड़ जाते हैं । स्टेक वाली फसल में फलों पर प्रत्यक्ष प्रकाश पड़ने से अधिक हानि होती है ।

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