कृषि वानिकी के अंतर्गत पोपलर की खेती (poplar ki kheti) कैसे करें?

कृषि वानिकी के अंतर्गत पोपलर की खेती (poplar ki kheti) के नीचे फसलों की बुआई करने के लिए वे वृक्ष सर्वोत्तम माने जाते है, जो पतझड़ी हैं अर्थात वर्ष के किन्हीं विशेष महीनों में अपनी पत्तियाँ गिरा देते है ।

इस दृष्टि से पोपलर जैसे वृक्ष कृषि वानिकी (agroforestry in hindi) के लिए सर्वोत्तम है । पोपलर के वृक्ष सर्दियों में अपनी पत्तियाँ नीचे गिरा देते हैं तथा पहले दो वर्षों में गेहूँ, मक्का, जौ, जई, अरहर, मूंग, उड़द तथा विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ आसानी से इन वृक्षों के नीचे उगाई जा सकती है ।

इसके अलावा छाया पसन्द करने वाली फसलें जैसे हल्दी, अदरक, पालक आदि फसले भी इन वृक्षों के नीचे पहले तीन - चार वर्षों तक आसानी से उगाई जा सकती हैं । वृक्षों की कटाई छंटाई भी प्रतिवर्ष करनी आवश्यक होती है ताकि गेहूँ, गन्ना, आलू, गोभी, टमाटर, बैंगन आदि सभी बहुवर्गीय फसलें आसानी से उगाई जा सकें ।


पोपलर की खेती कैसे करें | poplar ki kheti kaise kare

पोपलर की खेती (poplar ki kheti) में फसलों को उगाने में एक सावधानी अवश्य रखनी चाहिए कि वृक्षों की पंक्तियों में 5-6 मीटर का फासला अवश्य रखना चाहिए ताकि कृषि क्रियायें करने के लिए टैक्टर एवं हल - बैल आदि सुगमता से वृक्षों के बीच चल सकें तथा वृक्षों को विशेष हानि भी न हो ।

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कृषि वानिकी के अंतर्गत पोपलर की खेती (poplar ki kheti) कैसे करें?

पोपलर आधारित कृषि - वानिकी ( Poplar Based Agro - forestry )

पोपलर शीघ्र बढ़ने वाला पतझड़ होने वाला वृक्ष है जिसके अंतर्गत सर्दी के मौसम में पत्ते न होने के कारण कृषि खाद्यान्न, सब्जियाँ, मसाले, तिलहन तथा दलहन वाली फसलों को आसानी से उगाया जा सकता है ।


पोपलर की उन्नतशील प्रजातियाँ

भारतवर्ष में आस्ट्रेलिया तथा संयुक्त राज्य अमेरिका से लाई गयी विभिन्न प्रजातियों को व्यापारिक स्तर पर उगाकर देखा गया है । विभिन्न राज्यों द्वारा विभिन्न प्रजातियों को अपने - अपने क्षेत्रों में उगाने हेतु उचित पाया गया है ।

इनकी सूची निम्नवत् है - ये प्रजातियाँ 20-30 अक्षांश वालो क्षेत्रों के लिए बहुत उत्तम हैं ।

  • सिक्किम - पोपलस सिलिऐटा, पोपलस गेम्बली, पोपलस जैक्वामोन्टियाना ।
  • अरूणाचल प्रदेश - पोपलस सिलिऐटा, पोपलस गेम्बली ।
  • उत्तर प्रदेश - पोपलस रोवस्टा, पोपलस यूनानौन्सेरा ।
  • हरियाणा - पोपलस डेटोइडस की जी 3 किस्म ।
  • पंजाब - पोपलस डेटोइडस की जी 3 व 48 एवं डी 121 किस्म ।
  • जम्मू एवं कश्मीर - पोपलस नाझ्या की किस्में इटालिका, इल्वा, सिलिएटा आदि ।
  • महाराष्ट्र - जी 3 व 48: डी 121 किस्में ।
  • उत्तराखण्ड व मैदानी क्षेत्र - जी 3 व 48; डी 61,66,75,121 ।
  • हिमाचल प्रदेश - आई 15,65 मध्य पर्वतीय क्षेत्र : आई 65.78,214 ऊपरी क्षेत्र : पी सिलिऐकटा आदि ।


पोपलर कलम लगाने का उचित समय एवं विधि

पोपलर की पौध तैयार करने के लिए दोमट मिट्टी जो कार्बनिक पदार्थ में उच्च हो, अधिक सुविधाजनक होती है । मिट्टी का पी० एच० मान 5.0-7.0 के मध्य होना चाहिए । जमीन में 50-60 कि० ग्रा० प्रति हैक्टेअर की दर से थिमेट मिलाना दीमक की रोकथाम के लिए आवश्यक है । 2 किग्रा० प्रति कलम गोबर की सड़ी हुई खाद तथा 25 सेमी० लम्बी तथा 1-3 सेमी० मोटी कलमें गंडासे से काटकर अलग कर लेते हैं ।

कलमों को 15 जनवरी से 15 फरवरी तक किसी भी समय काटा जा सकता है । नमी की हानि से बचाने के लिए कलमों के दोनों सिरों को मोम में डुबाकर सील कर देते हैं । कलम पौधगृह में लगाने से पहले क्लोरिपाइरीफोस 20 ई० सी० (250 मिली 1000 लीटर पानी वाले घोल में) तथा पारायुक्त फफूंदीनाशक एमीसन (250 मिली. 1000 लीटर पानी वाले घोल में) 20 मिनट तक उपचारित कर लें ।

कलमों को 50-60 सेमी ० पौधों से पौधों के बीच तथा 60-80 सेमी० पंक्ति से पंक्ति के बीच फासला रखकर भूमि में केवल एक आँख ऊपर छोड़कर भली - भाँति गाड़ते हैं । कलम के चारों ओर की मिट्टी को अच्छी तरह दबा देते हैं । कलम लगाने के तत्काल बाद एवं तदुपरांत बरसात के प्रारम्भ तक 15-15 दिन के अंतराल पर सिंचित करते हैं ।

मानसून समाप्त होने के बाद भी 1-2 सिंचाई प्रति माह किया जाना अच्छी पौध के लिए आवश्यक है, साथ ही समय पर निराई - गुडाई करके खरपतवारों का सफाया किया जाना भी आवश्यक है ।


पोपलर के पेड़ लगाने के लिए गड्ढों की खुदाई

पहले बनाई गई सिंचाई की नालियों के सहारे आवश्यकता के अनुसार दूरी पर छिद्र बनाने वाले विशेष यन्त्र बर्मा द्वारा गड्ढे तैयार कर लिए जाते हैं जिनका व्यास 15 सेमी ० होता है । (गड्डे की गहराई लगभग एक मीटर होनी चाहिए ।)


पोपलर में पौध रोपण

पौध रोपण के लिए पौधा पौधगृह से उखाड़कर 48 घंटे तक ताजे पानी से भरे गड्ढे में डाल दिया जाता है । पौधे की बढ़ी हुई जड़ों को 10 सेमी ० छोड़कर नीचे से काट दिया जाता है । जिससे बनाये गये गड्ढे में पौध आसानी से अन्दर जा सके । पोधों को गड्ढों में लगाने से पूर्व दीमक तथा फफूंदी जनित बीमारियों से बचने के लिए पहले बताई गयी विधियों द्वारा उपचारित कर लें ।

छेद से निकली हुई मिट्टी में 2 किग्रा ० गोबर की सड़ी - गली खाद 50 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 25 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश 15 ग्राम 5 प्रतिशत वाली एलड्रेक्स धूल के साथ मिलाकर गड्ढे को भर दें ।


पोपलर के पौधों की देखभाल

फरवरी के माह से ही कलमों में फुटाव प्रारम्भ होने लगता है और अप्रैल माह तक चलता रहता है । अस्वस्थ एवं टूटे - फूटे मुख अथवा तनों वाले पौधों को अलग कर दें । खाली हुए स्थानों पर प्लास्टिक की थैलियों में लगे पौधे प्रतिस्थापित कर दें ।

पोपलर की खेती (poplar ki kheti) को अधिक पानी की आवश्यकता होने के कारण प्रथम वर्ष में सप्ताह में एक बार मानसून आने तक सिंचाई करते रहे । सर्दियों में 15 दिन बाद तथा दूसरे वर्ष महीने में दो बार आवश्यकतानुसार सिंचाई करें । मृदा परीक्षण द्वारा आवश्यकतानुसार प्रथम वर्ष में 180 ग्राम, द्वितीय वर्ष में 360 ग्राम तथा तृतीय वर्ष में 500 ग्राम यूरिया प्रति पौधा खाद दी जानी चाहिए ।


पोपलर के वृक्षों की कटाई छंटाई

वृक्षों के तनों को सीधे, स्वस्थ्य एवं सुडौल बनाए रखने के लिए प्रथम वर्ष में एक तिहाई भाग की छंटाई तथा दोहरे तनों की कटाई जून - जुलाई में ही कर देनी चाहिए । दुसरे तथा तीसरे वर्षों में आधे हिस्से तथा चौथे वर्ष में दो - तिहाई हिस्से तक वृक्षों की छंटाई सीधे तथा सुडौल तने प्राप्त करने के लिए बहुत ही आवश्यक है ।


कीड़ों तथा बीमारियों से बचाव

पोपलर वृक्ष को पत्ती छेदक, तना छेदक तथा दीमक बहुत हानि पहुँचाने वाले कीडे हैं । इस वृक्ष को सुरक्षा हेतु इन कीडों से बचाव बहुत ही आवश्यक है ।


पत्ती छेदक की रोकथाम के लिए -

0.1 कार्बरिक या एन्डोसल्फान 0.05 प्रतिशत का पत्तियों के ऊपर छिड़काव किया जाता है तना छेदक की रोकथाम के लिए 0.02 प्रतिशत डाइमेथेन का छिड़काव सितम्बर से अक्टूबर के महीनों में किया जाता है ।

वृक्षों को दीमक से बचाने के लिए 75 मि ० ली ० क्लोरोपायरीफॉस 50 लीटर पानी में घोलकर मिट्टी में डालें । गुलाबी बीमारी तथा जङगलन बीमारियाँ बहुत ही भयंकर रूप से पोपलर पौधों को हानि पहुँचाती हैं । इसके लिए कलमों को खेत में लगाने से पहले 0.1 बाविस्टीन के घोल में 20 मिनट डुबोने से कलम सड़न, जड़गलन तथा गुलाबी बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है ।


पोपलर के साथ कृषि फसलें कैसे लें?

पोपलर वृक्ष की विशेषता है, कि यह पौधा पतझड़ होने पर दिसम्बर से मार्च अप्रैल के महिनों के दौरान पत्तियाँ गिरा देता है और वृक्ष सूखी लकड़ी की भाँति खेतों में खड़े रहते हैं । इसलिए गेहूँ, जौ, गन्ना, बरसीम, मटर, आलू, सरसों, गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च इत्यादि फसलें सूर्य की भरपूर रोशनी मिलने के कारण आसानी से वृक्षों के नीचे उगाई जा सकती हैं ।

खरीफ की फसलों में मक्का, जवार, अरहर, उड़द, मूंग एवं यहाँ तक कि धान की फसल भी पोपलर वृक्ष के साथ पहले तीन वर्षों में आसानी से उगाई जा सकती हैं ।

जायद की फसलों में लौकी, टमाटर, खीरा एवं गन्ने की खेती इन वृक्षों के साथ सफलतापूर्वक की जा सकती है । चार - पाँच वर्ष पुराने पोपलर वृक्षों के नीचे हल्दी, अदरक, पोदीना एवं अन्य छाया पसन्द करने वाली फसलों की खेती करके अतिरिक्त मुनाफा कमाना सम्भव है ।


पोपलर की खेती से प्राप्त उपज

पोपलर वृक्ष बढ़ने वाले वृक्ष होने के कारण 6-7 वर्षों में 90-100 सेमी मोटाई वाले तने तथा 150-200 घन मीटर प्रति हैक्टेअर लकड़ी तैयार करने में सक्षम हो जाते हैं ।


देहरादून की रिर्पोट के अनुसार,

पंजाब में 46.92 घन मी० लकड़ी प्रति हैक्टेअर प्रतिवर्ष 8.75 वर्ष पुराने 3 मीटर की दूरी पर लगाये गये पोपलर वृक्षों से प्राप्त हुई ।आमतौर पर 6-7 वर्ष में वजन 3-6 कुन्तल तक हो जाता है, साथ ही 5-10 किग्रा० पत्तियाँ प्रतिवर्ष मिलती हैं जो चारे के रूप में एवं कार्बनिक खाद के रूप में प्रयोग की जाती हैं ।


पोपलर की खेती से प्राप्त आय

पोपलर की नर्सरी लगाने पर एक वर्ष में किसान एक से डेढ़ लाख रूपये प्रति हैक्टेअर की आमदनी कर सकता है । इसके अतिरिक्त 6-7 वर्षों में पोपलर के वृक्षों को काटकर बाजार में बेचा जाता है ।

पोपलर का रेट पेड़ की मोटाई, आयु, उपयोगिता एवं बाजार की दूरी पर निर्भर करती है ।


पोपलर की लकड़ी की कीमत (रेट)

सामान्यत: एक वृक्ष से 800-2000 रूपये तक की आय हो सकती है । मार्च 1996 में किये गये बाजारी सर्वेक्षण के आधार पर 60 सेमी० गोटाई वाले लट्टे की कीमत प्रति क्विंटल 350-400 रूपये तथा 25-45 सेमी० मोटाई के लठे की कीमत प्रति क्विंटल 150-200 रूपये थी ।

मार्च 1997 में यमुनानगर (हरियाणा) मंडी में किए गये सर्वेक्षण के आधार पर 60-70 सेमी० मोटाई के लठे की कीमत प्रति क्विंटल 350-525 रूपये थी । साथ ही उनकी चारे, हरी खाद व जलावन आदि की समस्यायें भी हल हो रही इस प्रकार, हम देखते हैं कि पोपलर वृक्ष के कृषि वानिकी (agroforestry in hindi) में प्रयोग से किसान भारी लाभ हैं ।

पोपलर वृक्ष की 4-6 वर्ष पुरानी लकड़ी कागज उद्योग में लुगदी बनाने में, 6-8 वर्ष पुरानी लकड़ी दियासलाई तथा फलों की टोकरियाँ बनाने एवं 6-12 वर्ष पुरानी लकड़ी प्लाई उद्योग में प्रयुक्त की जाती है ।

सामान्यत: 6-8 वर्षीय पोपलर से किसान को 4-8 लाख रूपये एक मुश्त प्रति हैक्टेअर एवं साथ ही 5-20 हजार रूपये अन्तः फसलों से प्रति वर्ष आमदनी होती है । कुल मिला कर पोपलर की खेती (poplar ki kheti) पर आधरित कृषि वानिकी एक आदर्श कृषि विधि है ।


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