मूंग की खेती कैसे करें पूरी जानकारी हिंदी में | moong ki kheti kaise kare?

  • मूंग का वानस्पतिक नाम (Botanical name) — विगना रेडियेटा  (Vigma radiata L. Wilezek)
  • मूंग की फसल का कुल (Family) — फेबीएसी (Fabaceae)
  • मूंग में गुणसूत्र की संख्या — 2n = 22 या 24

भारत में दलहनी फसलों में चने व अरहर के बाद मूंग की खेती (moong ki kheti) का तीसरा स्थान है । मूंग की फसल (moong ki fasal) पशुओं के लिये हरे चारे एवं हरी खाद बनाने के लिये भी उगाया जाता है ।


मूंग कोन सी फसल है?

मूंग एक दलहनी फसल है, जो भूमि पर फैल कर चलती है, जिससे यह भूमि को ढकने का कार्य करती है और जिससे मृदा क्षरण पर भी नियन्त्रण होता है ।

यह एक दलहनी फसल होने के कारण वायुमण्डल की नाइट्रोजन को एकत्रित करने का कार्य करती है जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है । 


मूंग की दाल का महत्व

भारत में खाई जाने वाली मूंग की दाल (moong ki daal) एक लोकप्रिय दाल है ।

मूंग की दाल (moong ki daal) में पाये जाने वाली प्रोटीन उत्तम गुणों वाली होती है । इसके दानों का उपयोग दाल के रूप में तथा आटे के रूप में विभिन्न व्यंजनों को बनाने में किया जाता है ।

मूंग के पौधों को पशुओं के लिये हरे चारे के रूप में भी प्रयोग किया जाता है, इसके हरे पौधे को भूमि में दबकर हरी खाद बनाई जा सकती है ।


मूंग की दाल के उपयोग

प्रतिदिन के भोजन में छिलकायुक्त तथा छिलकारहित मूंग की दाल का प्रयोग स्वस्थ व रोगी मनुष्य बहुतायत में करते हैं । मूंग की छिलकारहित दाल का प्रयोग नमकीन, चाट व मिठाइयाँ बनाने में किया जाता है ।

मूंग की हरी फलियों का प्रयोग सब्जी के रूप में किया जाता है । मूंग एक दलहन वर्ग की फसल होने के कारण वायुमण्डल से 30-40 किग्रा/है, नाइट्रोजन भूमि में मिलाती है । मूंग की दाल (moong ki daal) में उत्तम गुणों वाली लगभग 25% प्रोटीन पाई जाती है ।


मूंग का उत्पत्ति स्थान एवं इतिहास

मूंग की खेती (moong ki kheti) भारत में प्राचीनकाल से ही होती चली आ रही है । मूंग का जन्मस्थान भारत माना जाता है ।

यहीं से इसका प्रचार व प्रसार चीन, जापान, ईरान, अफ्रीका तथा एशिया के अन्य भागों में हुआ है ।


मूंग का भौगोलिक वितरण

मूंग भारत व दक्षिणी - पूर्वी एशिया की एक प्रमुख दलहनी फसल है । मूंग की खेती भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इण्डोनेशिया तथा चीन आदि देशों में की जाती है ।

भारत के लगभग सभी राज्यों में मूंग की खेती (moong ki kheti) होती है, लेकिन इसकी खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में महाराष्ट्र, उड़ीसा, आन्ध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा मध्यप्रदेश आदि हैं ।


मूंग का वानस्पतिक विवरण

मूंग के पौधों में गुणसूत्रों (Chromosome) की संख्या 2n = 24 होती है, यह Leguminoceac कुल से सम्बन्धित है । 

मूंग का पौधा एकवर्षीय व शाकीय होता है । मूंग के पौधे को ऊंचाई 80 से 100 सेमी तक होती है । इसके पौधे सीधे व ऊँचे बढ़ने वाले होते हैं । इसके पौधों की जड़ों में प्रन्थियाँ पाई जाती हैं, जो वायुमण्डल की नाइट्रोजन को स्थिर करने का कार्य करती है ।

इसकी एक फली में 10-15 बीज होते हैं तथा फली 5-10 सेमी. तक लम्बी होती है, पकने पर इसकी फली पीली व काली पड़ जाती है ।


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बसंत एवं ग्रीष्मकालीन मौसम में मूंग की दाल की खेती कैसे करें? | moong ki kheti kaise kare?

मूंग का पौधा भूमि सतह पर फैल जाता है, जिसके कारण मृदा कटाव नियन्त्रण में सहायक होता है । 

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मूंग की बसन्त व ग्रीष्मकालीन खेती के लिये निम्न सस्य क्रियाओं को अपनाना चाहिये -

मूंग की फसल (moong ki fasal) एक कम अवधि में पकने वाली फसल होने के कारण दो धान्य फसलों के बीच की अवधि में उगाई जा सकती है ।


मूंग की खेती के लिए उचित जलवायु की माँग

भावर्षाकालीन, बसन्तकालीनरत में मूंग की फसल वर्षाकालीन, बसन्तकालीनग्रीष्मकालीन तीनों मौसमों में की जाती है ।

भारत में मूंग की खेती (moong ki kheti) के लिये इन तीनों ही मौसमों के लिये अनुकूल है । दक्षिणी भरत में मूंग की खेती रबी के मौसम में भी की जाती है ।

मूंग की फसल (moong ki fasal) के लिये 28-30°C तापमान उपयुक्त रहता है । फूल आने के समय गर्म मौसम व चमकीली धूप लाभदायक रहते है । भारत में मूंग की खेती 600-1000 मिमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है ।


मूंग की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

मूंग की फसल (moong ki fasal) के लिये दोमट भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है ।

बलुई दोमट व मटियार दोमट भूमियों में भी मूंग की फसल उगाई जा सकती है । भूमि में जल निकास की उत्तम व्यवस्था होना आवश्यक है ।


मूंग की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें?

मूंग की फसल (moong ki fasal) के लिये कम जुताइयों की आवश्यकता होती है ।

गेहूं की फसल (gehu ki fasal) कटने के बाद केवल एक बार हैरो चलाकर खेत में पाटा लगाना चाहिये तत्पश्चात् खेत बुवाई के लिये तैयार हो जाता है ।


मूंग की खेती लिए उन्नत किस्मों का चुनाव

बसन्त व ग्रीष्मकालीन मूंग की किस्में सम्पूर्ण देश में उगाने के लिये उचित हैं ।

मूंग की प्रमुख उन्नत किस्में -

  • पूसा बैसाखी
  • PS - 16
  • PS - 7
  • PS - 10
  • PDM - 11
  • PDM - 54
  • पन्ना व सुनैना
  • MUM
  • पन्त मूंग -2
  • पन्त मूंग -3
  • सम्राट, टाईप 10
  • K - 851
  • CO - 4
  • G - 65
  • पदमा
  • 8ML - 3
  • पूसा 9072
  • TARM - 1
  • S8 व RMG - 62 आदि हैं ।


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मूंग की खेती कब होती है?

ग्रीष्मकालीन मूंग की जातियों की बुवाई अप्रैल या मई माह में की जा सकती है । यदि बसन्त के मौसम मैं खेत बुवाई के लिए उपलब्ध है तो मूंग की फसल की बुवाई से पूर्व में खेत बुवाई के लिये उपलब्ध है तो मूंग की फसल की बुवाई फरवरी के अन्तिम सप्ताह में कर देनी चाहिये ।

मूंग की बुवाई का सही समय - बसन्तकालीन मूंग की फसल की बुवाई फरवरी के अन्तिम सप्ताह में की जाती है । जबकि ग्रीष्मकालीन फसल अप्रैल माह में बोई जाती है ।


मूंग की फसल में अन्तरण

खरीफ के मौसम में लाइन से लाइन की दूरी 30-45 सेमी० रखी जाती है । बसन्त व ग्रीष्मकालीन मूंग की जातियों की बुवाई पंक्तियों में 20-25 सेमी० की दूरी पर करनी चाहिये । पौधे से पौधे की दूरी 7-10 सेमी० रखनी चाहिये ।


मूंग की बीज दर कितनी होती है?

खरीफ के मौसम में मूंग की फसल का 15-20 किया बीज/है पर्याप्त होता है । जबकि ग्रीष्मकालीन व बसन्तकालीन मूंग का बीज 25-30 किया/है. पर्याप्त होता है ।


मूंग के बीज का उपचार

मूंग के एक किग्रा. बीज को उपचारित करने के लिये 2 ग्राम थायराम व एक ग्राम बेविस्टीन का प्रयोग करना चाहिये ।


मूंग में राइजोबियम कल्वर का प्रयोग

मूंग एक दलहनी फसल होने के कारण व खेत में प्रथम बार बोये जाने पर बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिये । कल्चर का एक पैकेट 10 किग्रा. बीज के लिये पर्याप्त होता है ।


मूंग की खेती के लिए आवश्यक खाद व उर्वरक की मात्रा

मूंग की फसल के लिये आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा इससे पूर्व उगाई गई रबी की फसल के अवशेषों से पूरी हो जाती है ।

खरीफ की मूंग की फसल (moong ki fasal) के लिये 20 किग्रा. नाइट्रोजन व 40 किग्रा. फास्फोरस/है. का प्रयोग करना चाहिये । उर्वरकों की यह मात्रा बुवाई के समय बीज से 5 सेमी. दूरी व गहराई पर पड़नी चाहिये ।


मूंग में कितने पानी की आवश्यकता होती है?

वर्षा ऋतु की मूंग की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती । बसन्त व ग्रीष्मकालीन मौसमों में उगाई गई मूंग की फसल को 4-5 बार सिंचाई करनी पड़ती है ।


मूंग की फसल में आवश्यक जल निकास

वर्षा ऋतु में उगाई गई मूंग की खेती (moong ki kheti) को अधिक हानि होने की सम्भावना रहती है ।

अत: जल निकास का उचित प्रबन्ध करना आवश्यक होता है । मूंग की खेती में आवश्यक निराई - गुड़ाई और मूंग की फसल की बुवाई के एक माह बाद पानी आवश्यक है । एक दो निराई - गुड़ाई अवश्य करनी चाहिये ।


मूंग की खेती में उगने वाले खरपतवार एवं उनका नियंत्रण

मूंग की फसल में उगने वाले खरपतवार ओं को खरपतवार नाशक की प्रयोग से भी नष्ट किया जा सकता है ।

मूंग की फसल में खरपतवार नाशक दवा - मूंग की फसल की बुवाई से पहले बैसालिन की एक किग्रा० मात्रा 1000 ली. पानी में घोलकर प्रयोग करने पर अधिकतर खरपतवार नियन्त्रित किये जा सकते हैं ।


मूंग की खेती में लगने वाले कीट एवं उनका नियन्त्रण

मूंग की फसल पर रोमिल इल्ली (Hairy catter pillar) के प्रभाव से बहुत हानि होती है । यह पौधों और पत्तियों के भक्षक कीट के रूप में खा जाता है ।

इस पर नियन्त्रण हेतु - थायडॉ , थायमेट 10G व हैप्टाक्लोर आदि रसायनों में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिये ।


मूंग की फसल के रोग एवं उनका नियन्त्रण

मूंग की फसल पर लगने वाली प्रमुख बीमारियाँ व उन पर नियन्त्रण निम्न प्रकार है -


( i ) पीला मोजेक ( Yellow Mosaic ) -

यह रोग सफेद मक्खी से फैलता है । इसके कारण पत्तियों पर पीले चकत्ते पड़ जाते हैं और पत्तियाँ मुड़ जाती है । ऐसे पौधों में मूंग की फलियाँ कम लगती हैं और दाने सिकुड़ जाते हैं और पत्तियाँ मुड़ जाती हैं ।

नियन्त्रण के उपाय - मेटासिस्टॉक्स 0.19 का घोल बनाकर एक सप्ताह के अन्तर पर तीन बार छिड़काव करना चाहिये ।


( ii ) चारकोल विगलन ( Charcol rot ) –

इस रोग के प्रभाव से पौधों की जड़ों व तने काले व भूरे रंग के होकर गलने लगते हैं । यह रोग बसन्तकालीन व ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल में कम लगता है ।

उपचार हेतु - रोगरोधी फसलों को उगाना चाहिये । इसके अतिरिक्त पर्णचिल्ली व मोजेक आदि रोग भी मूंग की फसल पर आक्रमण कर क्षतिग्रस्त करते हैं ।


मूंग की फसल कितने दिन में तैयार होती है?

बसन्तकालीन व ग्रीष्मकालीन मूंग की जातियाँ 60-70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है ।


मूंग की फसल की कटाई एवं तुड़ाई

ग्रीष्मकालीन व बसन्तकालीन मूंग की फलियाँ 50% तक पक जाने पर फलियाँ की तुड़ाई कर लेनी चाहिये । फलियाँ की दूसरी तुड़ाई पकने पर करते हैं ।


मूंग की फसल की गहराई (Threshing)

फलियों को खेत में खुली धूप में रखते हैं जिससे फलियाँ चटककर फटने लगती हैं । फलियों को लकड़ी के डन्डे की सहायता से पीटकर दाना निकाल लिया जाता है ।


मूंग की खेती से प्राप्त उपज

उन्नतिशील विधियों को अपनाकर लगभग 18-20 क्विटल मूंग की उपज प्राप्त होती है तथा इसके साथ 30 क्विटल सूखा चारा भी मिलता है ।


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