जिसे मानव अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उगाता है, पौधों का वह समूह ही फसल (fasal) कहा जाता है ।
प्राचीनकाल से ही मनुष्य अपने जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर रहा है, जिसके लिए वह आवश्कतानुसार फसलों का उत्पादन करता रहा है ।
फसल क्या है? | fasal kya hain
फसल की परिभाषा - "पौधों का वह समूह जिसे मनुष्य किसी निश्चित क्षेत्र पर अपने आर्थिक महत्व की पूर्ति के लिए उगाता है, उसे ही फसल कहते हैं ।"
"The group of plants that humans grow on a certain area to fulfill their economic importance is called a crop."
भारतीय फसलें एवं उनका वर्गीकरण | faslo ka vargikaran
कृषि उत्पादन की दृष्टि से फसलों को ऋतुओं, उपयोगिता, एवं आर्थिक महत्व के आधार पर वर्गीकृत किया गया है ।
फसल क्या है इसकी परिभाषा एवं फसलों का वर्गीकरण कीजिए | Farming Study |
फसलों का वर्गीकरण निम्न प्रकार है -
- ऋतुओं के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- उपयोगिता के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- आर्थिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- दीप्तिकालिता के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- बीज के आकार के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- फसलों की जड़ों की गहराई के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- जल मांग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- मृदा पी.एच. एवं बनावट के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- मृदा कटाव को रोकने वाली फसलों के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- फसलों के विशेष उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
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1. ऋतुओं के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- खरीफ की फसलें
- रबी की फसलें
- जायद की फसलें
( i ) खरीफ की फसलें -
धान, बाजरा, मक्का, कपास, मूंगफली, शकरकन्द, उर्द, मूंग, लोबिया, ज्वार, तिल, ग्वार, जूट, सनई, अरहर, ढैंचा, गन्ना, सोयाबीन, भिण्डी इत्यादि ।( ii ) रबी की फसलें -
गेहूँ, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका, मसूर, आलू, तम्बाकू इत्यादि ।( iii ) जायद की फसलें -
कद्दू, खरबूजा, तरबूज, लौकी, तोरई, मूंग, खीरा, मिर्च, टमाटर, सूरजमुखी इत्यादि ।2. जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- एक वर्षीय फसलें
- द्वि वर्षीय फसलें
- बहु वर्षीय फसलें
( i ) एक वर्षीय फसलें -
धान गेहूँ, चना, लैंचा, बाजरा, मूंग, कपास, मूंगफली, सरसों, आलू, शकरकन्द, कहू, लौकी, सोयाबीन इत्यादि।( ii ) द्वि वर्षीय फसलें -
चुकन्दर, प्याज इत्यादि ।( iii ) बहु वर्षीय फसलें -
नेपियर घास, रिजका, फल वाली फसलें इत्यादि ।3. उपयोगिता के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- अन्तवती फसलें
- नकदी फसलें
- मृदा रक्षक फसलें
- हरी खाद वाली फसलें
( i ) अन्तवती फसलें -
उड़द, मूंग, चीनी, लाही, सांवा, आलू इत्यादि ।( ii ) नकदी फसलें -
गन्ना, आलू तम्बाकू, कपास, मिर्च, चाय, कॉफी, इत्यादि ।( iii ) मृदा रक्षक फसलें -
मूंगफली, मूंग, उड़द, शकरकंद, बरसीम, रिजका इत्यादि ।( iv ) हरी खाद वाली फसलें -
मूंग, बरसीम, सनई, ढैंचा, मोठ, मसूर, ग्वार, मक्का, लोबिया, बाजरा, इत्यादि ।ये भी पढ़ें :-
4. आर्थिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- अन्न या धान्य फसलें
- मसाले वाली फसलें
- रेशेदार फसलें
- चारा वाली फसलें
- फलदार फसलें
- औषधीय फसलें
- तिलहनी फसलें
- दलहनी फसलें
- जड़ एवं कन्द वाली फसलें
- उद्दीपक फसलें
- शर्करा वाली फसलें
( i ) अन्न या धान्य फसलें -
धान, गेहूं, जौ, चना, मक्का, ज्वार, बाजरा इत्यादि ।( ii ) मसाले वाली फसलें -
अदरक, पुदीना, प्याज, लहसुन, मिर्च, धनिया, अजवाइन, जीरा, सौंफ, हल्दी, काली, मिर्च, इलायची, और तेजपत्ता इत्यादि ।( iii ) रेशेदार फसलें -
जूट, कपास, सनई, पटसन, ढैंचा इत्यादि ।( iv ) चारा वाली फसलें -
बरसीम, रिजका, नेपियर घास, लोबिया, ज्वार, इत्यादि ।( v ) फलदार फसलें -
आम, अमरूद, नींबू, लीची, के,ला पपीता, सेब, नाशपाती, इत्यादि ।( vi ) औषधीय फसलें -
पुदीना, मैंथा, अदरक, हल्दी और तुलसी इत्यादि ।( vii ) तिलहनी फसलें -
सरसों, अंडरी, तिल, मूंगफली, सूरजमुखी, अलसी, कुसुम, धोरिया, सोयाबीन, और राई इत्यादि ।( viii ) दलहनी फसलें -
चना, उड़द, मूंग, मटर, मैसूर, अरहर, मूंगफली, सोयाबीन इत्यादि ।( viii ) जड़ एवं कन्द वाली फसलें -
आलू, शकरकंद, अदरक, गाजर, मूली, अरबी, रतालू, टेपियोका, शलजम इत्यादि ।( viiii ) उद्दीपक फसलें -
तम्बाकू, पोस्त, चाय, कॉफी, धतूरा, भांग इत्यादि ।( x ) शर्करा वाली फसलें -
चुकंदर, गन्ना इत्यादि ।5. दीप्तिकालिता के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- दीर्घ दीप्तिकालिता वाली फसलें
- अल्प दीप्तिकालिता वाली फसलें
- उदासीन दीप्तिकालिता वाली फसलें
( i ) दीर्घ दीप्तिकालिता वाली फसलें -
गेहूँ, जौ, जई, चना, मटर, राजमा, बरसीम, रिजका, मेथी, आलू (बीज उत्पादन के आधार पर), सरसों, तारामीरा, कुसुम, चुकन्दर, जीरा, धनिया, अलसी, अरण्डी, नाइजर आदि ।( ii ) अल्प दीप्तिकालिता वाली फसलें -
चावल, ज्वार, बाजरा, गन्ना, मूंग, उड़द, चवला, अरहर, मोठ, मूंगफली, सोयाबीन, सनई, ग्वार, जूट, तिल, तम्बाकू, आलू (कंद उत्पादन के आधार पर) आदि ।( iii ) उदासीन दीप्तिकालिता वाली फसलें -
कपास, सूरजमुखी तथा मक्का आदि ।6. बीज के आकार के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- छोटे बीज वाली फसलें
- बड़े बीज वाली फसलें
- मध्यम बीज वाली फसलें
( i ) छोटे बीज वाली फसलें -
सरसों, तम्बाकू एवं गोभी वर्गीय फसलें इत्यादि ।( ii ) बड़े बीज वाली फसलें -
गेहू, जौ तथा जई इत्यादि ।( iii ) मध्यम बीज वाली फसलें -
मक्का, मटर, कपास, चंवला, राजमा तथा मूंगफली इत्यादि ।7. फसलों की जड़ों की गहराई के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- गहरी जड़ों वाली फसलें
- उथली जड़ों वाली फसलें
( i ) गहरी जड़ों वाली फसलें -
सरसों, रिजका, अरहर, कपास, ग्वार आदि ।( ii ) उथली जड़ों वाली फसलें -
मक्का, गेहूँ, जौ, जई, बाजरा आदि ।ये भी पढ़ें :-
8. जल मांग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- अधिक सिंचाई चाहने वाली फसलें
- औसत सिंचाई चाहने वाली फसलें
- कम सिंचाई चाहने वाली फसलें
- अधिक पानी सहन करने वाली फसलें
- सूखा सहन करने वाली फसलें
( i ) अधिक सिंचाई चाहने वाली फसलें -
गन्ना, आलू, बरसीम, सब्जियाँ आदि ।( ii ) औसत सिंचाई चाहने वाली फसलें -
मक्का, गेहूँ, जौ, लोबिया आदि ।( iii ) कम सिंचाई चाहने वाली फसलें -
चना, मटर, अरहर तथा बाजरा आदि ।( iv ) अधिक पानी सहन करने वाली फसलें -
धान तथा जूट आदि ।( v ) सूखा सहन करने वाली फसलें -
ज्वार, बाजरा, ग्वार, कपास आदि ।9. मृदा पी.एच. एवं बनावट के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- अम्लीय मृदा वाली फसलें
- क्षारीय मृदा वाली फसलें
- क्ले मृदा वाली फसलें
( i ) अम्लीय मृदा वाली फसलें -
आलू, धान, चाय व राई आदि ।( ii ) क्षारीय मृदा वाली फसलें -
जौ, खजूर, बरसीम, ढैंचा आदि ।( iii ) क्ले मृदा वाली फसलें -
धान, कपास आदि ।10. मृदा कटाव को रोकने वाली फसलों के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- मृदा कटाव को बढ़ाने वाली फसलें
- मृदा कटाव को रोकने वाली फसलें
( i ) मृदा कटाव को बढ़ाने वाली फसलें -
मक्का, सरसों, अरहर, अरण्डी, बाजरा आदि ।( ii ) मृदा कटाव को रोकने वाली फसलें -
लोबिया, मूंगफली, मूंग आदि ।11. फसलों के विशेष उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
- सूचक फसलें
- कवर क्रॉप या पलवार फसलें
- परिचारिका फसलें
- कीट आकर्षक फसलें
- प्रहरी फसलें
- वृद्धि कारक फसलें
- समानान्तर फसलें
- रोपण फसलें
- हरी खाद वाली फसलें
- नकदी फसलें
- अन्तर्वर्ती फसलें
- ट्रक फसलें
- शिकारी फसलें
- घटक फसलें
- एकल फसलें या मोनोकल्चर
- सॉइलिंग फसलें
- साइलेज फसलें
- निर्गम फसलें
- गलियारा फसलें
- रेटुनिंग
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( i ) सूचक फसलें ( Indicator crops ) -
भूमि में पोषक तत्वों की कमी होने पर जो फसलें तुरंत अपने ऊपर कमी के लक्षण प्रदर्शित करने लगती है, सूचक फसलें कहलाती हैं ।जैसे - सूरजमुखी, मक्का, फूलगोभी आदि ।
( ii ) कवर क्रॉप या पलवार फसलें ( Mulch crops ) -
वे फसलें जो मृदा कटाव को रोकती है, उन्हें मृदा आरक्षक/भूमि संरक्षी फसलें या पलवार फसलें या भू - परिष्करण फसलें कहा जाता है । इन्हें कवर क्राम्प के नाम से भी जाना जाता है ।
जैसे - मूंग, मूंगफन, उड़द, शकरकंद, चंवला तथा लोबिया आदि ।
( iii ) परिचारिका फसलें ( Nurse crops ) -
मुख्य फसल के लिए कार्बनिक पदार्थ या सहारा प्रदान करने वाली फसलें परिचारिक फसलें कहलाती हैं । ये फसलें मुख्य फसलों की वृद्धि एवं विकास में सहायता प्रदान करती हैं ।जैसे - मटर में सरसों आदि ।
( iv ) कीट आकर्षक फसलें ( Trap crops ) -
यह फसलें जिन्हें मुख्य फसलों को कीटों से बचाने के लिए उसके चारों ओर उगाया जाता है, कीट आकर्षक फसलें कहलाती हैं ।
जैसे - टमाटर में खेत में चारों ओर गेंदा फसल उगाना आदि ।
( v ) प्रहरी फसलें ( Guard crops ) -
मुख्य फसल के चारों ओर जानवरों आदि से होने वाले नुकसान को बचाने के लिए उगाई जाने वाली फसलें प्रहरी फसलें या सीमांत फसलें कहलाती हैं ।जैसे - गन्ने की फसल के चारों ओर जूट की फसल उगाना आदि ।
( vi ) वृद्धि कारक फसलें ( Augmenting crops ) -
जब कोई अन्य फसल मुख्य फसल के अनुपूरक उगाई जाती है, तो उसे वृद्धि कारक फसलें कहा जाता है ।जैसे - बरसीम व रिजका में सरसों की फसल आदि ।
( vii ) समानान्तर फसलें ( Parallel crops ) -
मुख्य फसलों को हानि पहुँचाए बिना उसके साथ अतिरिक्त उपज प्राप्त करने के लिए जो फसलें उगाई जाती है, उसे समानांतर फसलें कहा जाता है ।
जैसे - अरहर के साथ उड़द ।
( viii ) रोपण फसलें ( Plantation crops ) -
एक विशेष प्रकार की खेती जिसमें रबड़, चाय, कहवा आदि विस्तृत पैमाने पर बोये जाते हैं ।( viiii ) हरी खाद वाली फसलें ( Green manure crops ) -
सनई, लैंचा, लोबिया तथा ग्वार आदि फसलें इस श्रेणी के अंतर्गत आती हैं ।( x ) नकदी फसलें ( Cash crops ) -
इस श्रेणी के अंतर्गत गन्ना, आलू, कपास तथा ग्वार आदि फसलें आती हैं ।( xi ) अन्तर्वर्ती फसलें ( Catch crops ) -
दो मुख्य फसलों के बीच में तेजी से वृद्धि करने वाली एवं अल्प अवधि में तैयार होने वाली फसल को अन्तर्वर्ती फसल कहा जाता है ।जैसे - चंवला, मूंग, तोरिया आदि ।
( xii ) ट्रक फसलें ( Truck erops ) -
टनों में पैदा होने वाली यह फसलें मुख्यतः एक स्थान से दूरस्था बाजार में भेजने के लिए तैयार की जाती हैं ।जैसे - फल एवं सब्जी वाली फसलें ।
( xiii ) शिकारी फसलें ( Smother crops ) -
ऐसी फसलें जो खरपतवारों को भौतिक रूप से दबाकर नष्ट कर देती है, शिकारी फसलें कहलाती हैं ।जैसे - बरसीम, लोबिया तथा सनई आदि ।
( xiiii ) घटक फसलें ( Component crops ) -
अंतर्वर्ती फसल उत्पादन में मुख्य फसल की पंक्तियों के बीच जो फसल बोयी जाती है, उसे घटक फसल कहा जाता है ।जैसे - गन्ने की फसल के बीच में मूंग, उड़द एवं लोबिया ।
( xiiiii ) एकल फसलें या मोनोकल्चर ( Monoculture ) -
बिना किसी अन्तःफसल के एक फसल को बोना एकल फसल या मोनो फसल कहलाता है ।जैसे - धान के बाद धान एक ही खेत में उगाना ।
( xiiiiii ) सॉइलिंग फसलें ( Soiling crops ) -
यह फसलें हरे चारे के रूप में उगाई जाती है तथा हरी अवस्था में ही इन फसलों को जानवरों को खिला दिया जाता है ।जैसे - रिजका, बरसीम, नेपियर, जई आदि ।
( xiiiiiii ) साइलेज फसलें ( Silage crops ) -
जब चारे के मौसम में आवश्यकता से अधिक चारा होने की स्थिति में साइलो गड्डों में प्राकृतिक किण्वन क्रिया द्वारा संरक्षित कर लिया जाता है तथा जब चारे का अभाव होता है, तो सायलों गड्डों को खोलकर चारे का प्रयोग किया जाता है । इस प्रकार की फसलों को साइलेज फसलें कहा जाता है ।जैसे - ज्वार, बाजरा, मक्का, जई, नेपियर घास आदि ।
( xiiiiiiii ) निर्गम फसलें ( Exhaustive crops ) -
ये फसल जिस भी खेत में उगाई जाती है, वहाँ से ये फसलें काफी मात्रा में पोषक तत्व ग्रहण कर लेती है, जिसके कारण भविष्य में बोई जाने वाली फसलों को सिफारिश से अधिक पोषक तत्व देने की जरूरत पड़ती है, अन्यथा उनकी पैदावार कम हो जाती है ।जैसे - ज्वार, अलसी ।
( xiiiiiiiii ) गलियारा फसलें ( Alley crops ) -
वे फसलें जो ऐसे पेड़ों या झाड़ियों की संकरी गली के बीच उगाई जाती हैं जो भूमि कटाव रोकने, भूमि की उर्वरता व उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से उगाई जाती है, गलियारा फसलें कहलाती है ।जैसे - ज्वार, उड़द व हल्दी आदि को सुबबूल एवं खेजड़ी के बीच उगाना ।
( xx ) रेटुनिंग ( Ratooning ) -
पहली वाली फसल को काटने के बाद उसी फसल के जड़ एवं तना अवशेषों से दूसरी फसल लेना रेटुनिंग कहलाता है ।जैसे - ऐसा प्रायः गन्ना, ज्वार व बाजरा में प्रयोग में लाया जाता है ।