चुकन्दर की उन्नत खेती कैसे करें | chukandar ki kheti | beetroot in hindi

  • चुकन्दर का वानस्पतिक नाम (Botanical Name) - Beta vulgaris
  • चुकन्दर का कुल (Family) - Chenopodiaceae
  • गुणसूत्र संख्या (Chromosomes) - 2n=

भारत व संसार के अन्य ठण्डे क्षेत्रों में ही चुकन्दर की खेती (chukandar ki kheti) की जाती है । इन ठण्डे क्षेत्रों में रूस, अमेरिका, इटली, जर्मनी व अन्य यूरोपीय देश सम्मिलित हैं ।

भारत में चुकन्दर की खेती उत्तराखण्ड, काश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान व पंजाब के ठण्डे क्षेत्रों में रबी के मौसम में की जाती है । चुकन्दर (beetroot in hindi) मूल रूप से एक ठण्डी जलवायु की फसल है । इसके अंकुरण के लिए 12-16°C तापमान अनुकूल होता है ।

चुकन्दर (chukandar) के पौधों की अच्छी वृद्धि एवं बढ़वार के लिए 22-25°C तापमान उपयुक्त रहता है । 28°C से अधिक तापमान होने पर चुकन्दर (beetroot in hindi) के कन्द में शर्करा की मात्रा 16% से घटने लगती है ।


चुकन्दर की खेती से लाभ

चुकन्दर की फसल (chukandar ki fasal) चीनी के उत्पादन में उपयोग में लाई जाने वाली प्रमुख फसल गन्ने का विकल्प है । इसके पौधे का हरा वानस्पतिक भाग पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयुक्त होता है । चुकन्दर (beetroot in hindi) का लोग भोजन में प्रायः सलाद के रूप में भी प्रयोग करते हैं ।


चुकन्दर का संघटन

चुकन्दर में 70 से 75 प्रतिशत जल तथा 25 से 30 प्रतिशत ठोस पदार्थ पाए जाते हैं । इसमें 17-18 प्रतिशत तक शर्करा पाई जाती है तथा 6 से 8 प्रतिशत तक अन्य ठोस पदार्थ पाए जाते हैं । अतः चुकन्दर (beetroot in hindi) चीनी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है ।


चुकन्दर का भौगोलिक वितरण

चुकन्दर के कन्द से लगभग सन् 1750 में सर्वप्रथम जर्मनी की प्रयोगशाला में चीनी के क्रिस्टलों (crystals) का निर्माण किया गया । यहीं से अनेक यूरोपीय देशों में चुकन्दर का प्रचार एवं प्रसार हुआ ।

वर्तमान समय में चुकन्दर की खेती (chukandar ki kheti) करने वाले प्रमुख देशों में रूस, इटली, फ्रांस, जर्मनी तथा संयुक्त राज्य अमेरिका आदि हैं । 

सम्पूर्ण विश्व में लगभग 10 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल पर चुकन्दर की खेती (chukandar ki kheti) की जाती है और इसका कुल उत्पादन 270 मिलियन टन है । इसकी औसत उत्पादकता लगभग 360 क्विटल / हैक्टेयर है । भारत में चुकन्दर की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल काश्मीर, पंजाब व राजस्थान आदि हैं ।


चुकन्दर का वानस्पतिक विवरण

चुकन्दर का पौधा द्विवार्षिक (biennial) होता है ।

प्रथम वर्ष में इसके पौधे में जड़ें एवं पत्तियाँ आदि बनते हैं जबकि दूसरे वर्ष में इसके पौधे पर फूल व बीज बनते हैं । इसकी मुख्य जड़ मूसला जड़ (tap root) होती है तथा इसका कन्द (tuber) मोटा रसदार एवं खाने में स्वादिष्ट होता है ।


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चुकन्दर की खेती के लिए उचित जलवायु

चुकन्दर मूल रूप से एक ठण्डी जलवायु (cool climate) की फसल है । 

उत्तरी भारत में चुकन्दर की खेती (chukandar ki kheti) रबी के मौसम में की जाती है । इसके बीज के अंकुरण के लिए 12-16°C तापमान अनुकूल होता है । पौधों की उचित वृद्धि एवं बढ़वार के लिए 22-25°C तापमान उपयुक्त रहता है । तापमान अधिक हो जाने पर चुकन्दर में शर्करा की मात्रा घट जाती है ।


चुकन्दर की खेती के लिए उपयुक्त भूमि

चुकन्दर की खेती (chukandar ki kheti) के लिए बलुई दोमट मृदा सर्वोत्तम होती है । खेत में जल निकास का उचित प्रबन्ध होना आवश्यक है । उपयुक्त मृदा का pH मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए । 

चुकन्दर की फसल एक 'लवणरोधी फसल' (salt tolerant crop) । यह pH मान 9.0 तक बाली मृदाओं में भी उगाई जा सकती है । अम्लीय व जलमग्न भूमियाँ चुकन्दर की खेती (chukandar ki kheti) के लिए अनुकूल नहीं हैं ।


भारत में चुकन्दर की उन्नत खेती कैसे करें? | chukandar ki kheti

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चुकन्दर की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें?

खरीफ की फसल की कटाई के पश्चात् मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की एक गहरी जुताई करनी चाहिए । सामान्यतः बुवाई से पूर्व एक सिंचाई पलेवा के रूप में की जाती है ।

तत्पश्चात् 3 या 4 बार हैरो चलाकर खेत की मिट्टी बारीक एवं भुरभुरी बना ली जाती है । आवश्यकतानुसार पाटे का प्रयोग भी करना चाहिए ।


चुकन्दर की खेती में अपनाए जाने वाले फसल चक्र

चुकन्दर रबी के मौसम में उगाई जाने वाली एक शर्करायुक्त फसल है । चुकन्दर की फसल (chukandar ki fasal) के साथ अपनाए जाने वाले फसल चक्र रबी की फसलों के साथ अपनाए जाने वाले फसल चक्रों के समान हैं ।

खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों जैसे - मक्का ज्वार बाजरा, धान व अहरहर आदि के बाद चुकन्दर की खेती (chukandar ki kheti) की जा सकती है ।

चुकन्दर की फसल के साथ अपनाए जाने वाले प्रमुख फसल चक्र निम्न प्रकार है -

  • ज्वार - चुकन्दर ( एकवर्षीय )
  • बाजरा चुकन्दर ( एकवर्षीय )
  • मक्का - चुकन्दर ( एकवर्षीय )
  • लोबिया - चुकन्दर ( एकवर्षीय )


अन्तः फसली खेती

शरदकालीन गन्ने के साथ चुकन्दर की अन्तः खेती काफी प्रचलित है ।


चुकन्दर की प्रमुख जातियाँ

भारत में संसार के विभिन्न देशों से आयात की गई चुकन्दर की विभिन्न जातियाँ निम्न प्रकार है -

  • ट्राइबेल ( Tribel ) 
  • ट्राइप्लेक्स ( Trip )
  • रामोन्सकाया ( Ramonskaya ) 
  • dfat tramviet ( Maribo Magnapoly ) 
  • hfat ureteraît ( Maribo Anglopoly )

भारत में यहाँ की जलवायु के लिए अधिक अनुकूल प्रजाति के विकास पर कार्य विभिन्न शोध संस्थानों में चल रहा है ।


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चुकन्दर की खेती कब करें?

चुकन्दर की खेती (chukandar ki kheti) भारत में रबी के मौसम में की जाती है । इसकी बुवाई के लिए उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 30 अक्टूबर है ।


चुकन्दर का बीज कैसे बनता है?

चुकन्दर का बीज उत्पादन केवल ठण्डे क्षेत्रों में ही सम्भव है । भारत के उत्तरी एवं पर्वतीय क्षेत्रों में इसका बीजोत्पादन किया जाता है ।

इसके लिए मैदानी क्षेत्रों की जलवायु अधिक तापमान के कारण उपयुक्त नहीं है । फसल में बीज उत्पादन बुवाई के दूसरे वर्ष में होता है । एक हैक्टेयर चुकन्दर की फसल से लगभग 5 से 6 क्विटल तक बीज प्राप्त होता है ।


चुकन्दर की बीज दर कितनी होती है?

चुकन्दर की एक हैक्टेयर खेत की बुवाई के लिए 8 से 10 कि. बीज की आवश्यकता होती है ।


चुकन्दर की फसल में बोल्टिंग का क्या अर्थ है?

चुकन्दर का पौधा द्विलार्षिक (biennial) होता है । इसके पौधे में पहले वर्ष में जड़ें व पत्तियाँ आदि बनते हैं तथा दूसरे वर्ष में फूल व बीज बनते हैं ।

कभी - कभी वायुमण्डल का ताप बढ़ जाने पर तथा वातावरण प्रतिकूल रहने पर इसकी फसल में प्रथम वर्ष में ही पुष्पक्रम व फूल बन जाते हैं, इसे 'चुकन्दर में बोल्टिंग(bolting in beetroot in hindi) कहा जाता है ।


चुकन्दर की बुवाई की विधि

चुकन्दर की फसल की बुवाई डिबलर द्वारा व हल के पीछे कुंडों में की जा सकती है । चुकन्दर की बुवाई समतल खेत में या मेंडों पर पंक्तियों में की जाती है ।


चुकन्दर की फसल में अन्तरण

चुकन्दर की फसल उगाने के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 50 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेमी. उचित रहती है ।


चुकन्दर की बुवाई की गहराई

चुकन्दर का बीज 3 से 4 सेमी० की गहराई पर बोना चाहिए ।


चुकन्दर में बीजोपचार

चुकन्दर के एक किग्रा. बीज को उपचारित करने के लिए 2 ग्राम थायराम रसायन की मात्रा पर्याप्त रहती है ।


चुकन्दर की खेती के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक

चुकन्दर की खेती (chukandar ki kheti) के लिए इसकी बुवाई से एक माह पूर्व 30-40 क्विटल गोबर की सड़ी - गली खाद खेत में प्रति हैक्टेयर की दर से फैलाकर मिला देनी चाहिए ।

इस फसल की अच्छी पैदावार लेने के लिए 120 कि. नाइट्रोजन, 80 किग्रा. फास्फोरस व 100 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए । भूमि परीक्षण के पश्चात् ही पोषक तत्वों की मात्रा का निर्धारण करना चाहिए । 

उपरोक्त नाइट्रोजन का आधा भाग तथा सम्पूर्ण फास्फोरस व पोटाश बुवाई के समय ही प्रयोग करना चाहिए । नाइट्रोजन की शेष मात्रा फसल की बुवाई के लगभग 50 दिनों बाद विरलीकरण की क्रिया के बाद प्रयोग करनी चाहिए । हल्की भूमियों में इस मात्रा को दो या तीन बार में प्रयोग करना लाभकारी रहता है ।


चुकन्दर की खेती के लिए आवश्यक सिंचाई

चुकन्दर की फसल की कुल जलमाँग लगभग 1000 मिमी. है । इसकी फसल के कुल अन्तराल में तापमान एवं वर्षा को ध्यान में रखते हुये यह से 10 सिंचाइयों से पूर्ण की जाती है ।

सामान्यतः 3 सप्ताह के अन्तराल पर खेत की सिंचाई करनी आवश्यक होती है किन्तु खेत में जलभराव की स्थिति नहीं होनी चाहिए । इससे चुकन्दर के कन्द की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।


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चुकन्दर में विरलीकरण

चुकन्दर (beetroot in hindi) के प्रत्येक बीज से बुवाई के पश्चात् 3 से 5 बीजांकुर फूटते है जिससे प्रति इकाई क्षेत्रफल में पौधों की संख्या बहुत अधिक होने की सम्भावना रहती है ।

बुवाई के एक माह बाद पौधों की छटाई कर देनी चाहिए । पौधों की छटाई करना ही विरलीकरण (thinning) कहलाता है । चुकन्दर के एक हैक्टेयर खेत में पौधों की संख्या 70-75 हजार रखी जाती है ।


चुकन्दर की फसल पर मिट्टी चढ़ाना

पौधों के कुछ बड़ा होने पर कन्द की अच्छी वृद्धि के लिए उस पर मिट्टी चढ़ाने का कार्य किया जाता है । 

अक्टूबर माह में बोई गई चुकन्दर की फसल के लिए मिट्टी चढ़ाने का कार्य दिसम्बर माह का समय उपयुक्त होता है । मिट्टी चढ़ाने से चुकन्दर की फसल के कन्द फूल जाते हैं जिससे उपज में वृद्धि होती है ।


चुकन्दर की फसल में लगने वाले खरपतवार एवं उनका नियन्त्रण

उत्तरी भारत में चुकन्दर रबी के मौसम में उगाई जाती है अत: इस फसल के साथ रबी के मौसम के खरपतवार भारी मात्रा में उग जाते है ।

चुकन्दर को खरपतवारों की हानि से बचाने के लिए - बुवाई के दो माह तक जलमाँग कुल 8 लगभग दो बार निराई करनी चाहिए । खरपतवारनाशियों के प्रयोग से भी खरपतवारों को नष्ट किया जा सकता है ।

इस फसल में पैरामीन खरपतवारनाशी की 1 किग्रा मात्रा का 1000 लीटर जल में घोल बनाकर छिड़काव करने से उगने वाले खरपतवार नष्ट हो जाते हैं ।


चुकन्दर की फसल सुरक्षा

चुकन्दर की फसल पर बिहार रोमिल इल्ली का प्रकोप होने से फसल को हानि होती है । इस पर नियन्त्रण - थायडान या थायमेट 10G का प्रयोग करना चाहिए ।

चुकन्दर की फसल में लगने वाले रोगों में पर्णचित्ती (leaf spot) व मूल विगलन (root rot) आदि प्रमुख है । इनका समयानुसार उपचार कर होने वाली क्षति से बचा जा सकता है ।


चुकन्दर कितने दिन में तैयार हो जाती है?

चुकन्दर की फसल बुवाई के लगभग 180-200 दिनों में तैयार हो जाती है ।


चुकन्दर की फसल की कटाई

अक्टूबर माह में बोई गई फसल अप्रैल के प्रथम पखवाड़े में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है । इस फसल की कटाई से 4-5 दिन पूर्व खेत की एक हल्की सिंचाई करनी चाहिए और तत्पश्चात् फसल की कटाई की जाती है ।

सिंचाई करने से खेत में पर्याप्त नमी होने पर चुकन्दर के कन्दों को सरलतापूर्वक मृदा से निकाला जा सकता है ।


चुकन्दर की फसल से प्राप्त उपज

चुकन्दर के एक हैक्टेयर खेत से लगभग 400 क्विटल तक कन्दों की प्राप्ति होती है और लगभग 50-60 क्विटल तक हरा चारा भी प्राप्त होता है ।

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