- बरसीम का वानस्पतिक नाम (Botanical Name) - ट्राईफोलियम ऐलेक्जेडिनम (Trifolium alexandrinum)
- बरसीम का कुल (Family) - लेग्यूमिनेसी (Laguminoceae)
- गुणसूत्र (Choromosomose) - 2n=16
उत्तर भारत के उत्तरी क्षेत्रों में बरसीम की खेती (berseem ki kheti) पशुओं के लिए हरे चारे के लिए की जाती है ।
बरसीम का आर्थिक महत्व
बरसीम रबी में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फलीदार चारे वाली फसल है । दुधारू पशुओं के लिए यह एक उत्तम, पौष्टिक एवं स्वादिष्ट चारा होता है ।
बरसीम के हरे चारे में प्रोटीन लगभग 24%, रेशे 30 से 80%, कैल्शियम 3% व फास्फोरस 0.5% पाया जाता है । इसको संरक्षित कर पशुओं के लिए साइलेज (silage) के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है । इसे उगाने से मृदा के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों में सुधार होता है और भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है ।
बरसीम की खेती (berseem ki kheti) से एक हैक्टेयर भूमि में लगभग 45 किग्रा. नाइट्रोजन व 20 किग्रा. नाइट्रोजन उपलब्ध होता है ।
बरसीम का उत्पत्ति स्थान एवं इतिहास
विभिन्न इतिहासकारों के मतानुसार बरसीम की फसल (berseem ki fasal) मिश्र देश से सन् 1900 में भारत में लाई गई । मिश्र देश ही बरसीम का जन्म स्थान माना जाता है ।
इसी कारण बरसीम को 'इजीपशियन घास' (Egyptian grass) भी कहा जाता है ।
बरसीम का भौगोलिक वितरण
बरसीम एशिया व अफ्रीका महाद्वीपों के अनेक देशों में हरे चारे की एक प्रमुख फसल है ।
बरसीम की खेती (berseem ki kheti) करने वाले प्रमुख देशों में मिश्र, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश व इटली आदि हैं । भारत में बरसीम की खेती पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार व गुजरात आदि राज्यों में की जाती है ।
बरसीम की वानस्पतिक विवरण
बरसीम का वानस्पतिक नाम Trifolium alexandrinum है । यहलैग्युमिनोसी (Leguminoceae) परिवार से सम्बन्धित है ।
इसका पौधा एकवर्षीय (annual) एवं शाकीय (herbaceous) होता है । इसके प्रत्येक डण्ठल पर तीन पत्तियाँ पाई जाती हैं । अतः इसे 'तिपतिया घास' (clover) भी कहा जाता है । इसके फूल सफेद व बैंगनी रंग के होते हैं ।
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बरसीम की खेती के लिए उचित जलवायु
भारत में बरसीम के खेती उष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है तथा इसकी फसल की उपयुक्त वृद्धि एवं बढ़वार के लिए ठण्डा एवं शुष्क मौसम अनुकूल रहता है ।
इसके बीज के अंकुरण के लिए दिन का उपयुक्त तापमान 24-28°C तथा पौधों की अच्छी वानस्पतिक वृद्धि के लिए 15-22°C तापमान उपयुक्त होता है । 4°C से कम तथा 40°C से अधिक तापमान को इस फसल के पौधे सहन नहीं कर पाते हैं ।
बरसीम की खेती के उपयुक्त भूमि
बरसीम की खेती (berseem ki kheti) विभिन्न प्रकार मृदाओं में की जा सकती है । उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है ।
मृदा का pH मान 6.5 से 7.5 के बीच उपयुक्त रहता है । हल्की मृदाओं में सिंचाई की सुविधा होने पर इसकी खेती की जा सकती है । अम्लीय व जलमग्न भूमियाँ बरसीम की खेती (berseem ki kheti) के लिए उपयुक्त नहीं हैं ।
हरे चारे के लिए बरसीम की उन्नत खेती कैसे करें? | berseem ki kheti kaise kare?
हरे चारे के लिए बरसीम की खेती कैसे करें? | berseem ki kheti kaise kare |
बरसीम की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें?
प्रायः धान के खेतों में बरसीम की बुवाई की जाती है । सर्वप्रथम मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की एक गहरी जुताई करते हैं ।
इसके पश्चात् 2-3 बार हैरो व पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को बारीक एवं भुरभुरा बना लिया जाता है । खेत का समतल होना भी आवश्यक है । बुवाई से पूर्व खेत में छोटी - छोटी क्यारियाँ बना ली जाती हैं । इन क्यारियों की लम्बाई व चौड़ाई 4 या 5 मी ० से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
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बरसीम की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव
बरसीम के पौधे की कोशिकाओं में पाए जाने वाले गुणसूत्रों की संख्या के आधार पर इसकी जातियों के डेप्लायड (Deploid) व टेट्राप्लायड (Tetraploid) दो वर्गों में विभाजित किया जाता है ।
बरसीम की उन्नत किस्में -
1. डेप्लायड जातियाँ ( Deploid Varieties ) -
इस वर्ग की जातियों के बीज छोटे, पत्तियाँ पतली व हल्की तथा उपज टेट्राप्लायड जातियों की अपेक्षा कम होती हैं ।
उदाहरण - BL - 1, BL - 2, BL - 10, IGFRI - 99-1 व मेस्कावी आदि ।
2. टेट्राप्लायड जातियाँ ( Tetraploid varieties ) -
इस वर्ग की जातियों के बीज बड़े, पत्तियाँ चौड़ी व भारी तथा उपज डेप्लायड जातियों की तुलना में अधिक होती हैं ।
उदाहरण - T - 526, T - 529, पूसा ज्वाइन्ट व T - 678 आदि ।
बरसीम में अपनाए जाने वाले फसल चक्र
सामान्यतः धान वाले खेतों में रबी के मौसम में बरसीम की बुवाई की जाती है ।
उत्तरी भारत में बरसीम की फसल के कुछ प्रमुख फसल चक्र निम्न प्रकार है -
- धान - बरसीम ( एकवर्षीय )
- मक्का - बरसीम ( एकवर्षीय )
- धान - बरसीम - उड़द ( एकवर्षीय )
- मक्का - बरसीम - लोबिया ( एकवर्षीय )
बरसीम की फसल के साथ सरसों व लाही की मिलवां खेती (mixed cropping in hindi) भी की जाती है ।
बरसीम की बुवाई कब की जाती है?
बरसीम की बुवाई के लिए उपयुक्त समय 1 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक है । इससे पूर्व बुवाई करने से बरसीम की फसल में वर्षा से जलभराव होने पर हानि होने की सम्भावना रहती है । देर से बुवाई करने पर अंकुरण कम होता है एवं पौधों की वृद्धि भी धीमी एवं कम होती है ।
बरसीम की बीजदर कितनी होती है?
बरसीम की डेप्लायड (deploid) जातियों का 20-30 किग्रा० बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त रहता है जबकि टेट्राप्लायड (tetraploid) जातियों का 30-40 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए ।
बुवाई समय से पूर्व अथवा देरी से करने पर बीज की मात्रा 5 किग्रा./हैक्टेयर की दर से बढ़ा देनी चाहिए । बरसीम की प्रथम कटाई बुवाई के लगभग 45 दिनों के पश्चात् होती है । इस समय तक बरसीम के पौधों की वृद्धि कम होने के कारण चारा कम प्राप्त होता है । अतः बुवाई के समय बरसीम के बीज के साथ सरसों का बीज 1-2 किग्रा./हैक्टेयर की दर से मिलाकर बुवाई करनी चाहिए ।
बरसीम में बीजोपचार
बरसीम के बीज के साथ प्रायः विभिन्न खरपतवारों जैसे कासनी (Cichorium intybus) आदि का बीज रहता है ।
कासनी के बीज को बरसीम के बीज से पृथक करने के लिए अशुद्ध बीज को 5 से 10% नमक के घोल (100 लीटर जल में 5 से 10 किग्रा० नमक) में डालने पर कासनी के बीज पानी के ऊपर तैरने लगते हैं । इन्हें निकालकर व बरसीम का बीज साफ करके इसको राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए ।
बरसीम के बीज का राइजोबियम उपचार
बरसीम के बीज की बुवाई से पूर्व उसको राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना आवश्यक होता है ।
इसके लिए 1 लीटर जल में 100 ग्राम गुड़ का घोल बनाकर उस पर कल्चर का छिड़काव कर बुवाई से पूर्व बीज को उससे उपचारित करना चाहिए । कल्चर उपलबध न होने पर पहले से बरसीम बोए गए खेत की 25 किग्रा० मिट्टी को 25 किग्रा. बीज में मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई हेतु प्रयोग करना चाहिए ।
बरसीम के बोने की विधि
उत्तरी भारत में बरसीम की फसल चारे के उद्देश्य से उगाई जाती है । बरसीम की बुवाई छिटकवां विधि से करना इस क्षेत्र में एक लोकप्रिय परम्परा है । इस विधि में खेत में 5 सेमी. पानी भरकर खेत को कीचड़नुमा (pudling) बना लिया जाता है ।
तत्पश्चात् बीज को खेत में समान रूप से बिखेरकर बुवाई कर दी जाती है ।
बरसीम की खेती के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक
बरसीम की एक हैक्टेयर फसल के लिए 20 किग्रा० नाइट्रोजन व 60 कि. फास्फोरस की आवश्यकता होती है । इन तत्वों की पूर्ति के लिए प्रयोग किए जाने वाले उर्वरकों की सम्पूर्ण मात्रा फसल की बुवाई के समय ही प्रयोग कर देनी चाहिए ।
बरसीम की खेती के लिए आवश्यक सिंचाई
बरसीम की फसल में अक्टूबर माह में 8-10 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए । इस फसल को नवम्बर से जनवरी तक लगभग 15 दिन के अन्तराल पर तथा फरवरी व उसके बाद प्रतिमाह सिंचाई करनी चाहिए । बरसीम की फसल को कुल 10-15 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है ।
बरसीम की कटाई का की जाती है?
बरसीम की बुवाई के लगभग 40-45 दिन पश्चात इसकी प्रथम कटाई प्रारम्भ की जाती है ।
इसके पश्चात् प्रतिमाह फसल की एक कटाई करनी चाहिए । बरसीम की फसल की कुल 4-5 कटाइयाँ की जा सकती हैं । बरसीम के पौधों की कटाई जमीन से लगभग 5 सेमी. की ऊँचाई पर करनी चाहिए । बीजोत्पादन के लिए उगाई गई फसल में फरवरी माह के बाद कटाई बन्द कर देनी चाहिए ।
बरसीम की खेती से प्राप्त उपज
बरसीम की डेप्लायड (deploid) जातियों की एक हैक्टेयर फसल से 700 से 800 क्विटल हरा चारा तथा टेट्राप्लायड जातियों से 900 से 1100 क्विटल तक हरा चारा प्राप्त होता है । बीजोत्पादन के लिए उगाई गई फसल से फरवरी के बाद कटाई बन्द करने पर क्रमश: 4 व 6 क्विटल/हैक्टेयर के लगभग बीज की प्राप्ति होती है ।