- आलू का वैज्ञानिक नाम (Botanical Name) - सोलेनम टुबेरोसम (Solanum tuberosum)
- आलू का कुल (Family) - सोलेनेसी (Solanaccac)
- गुणसूत्र संख्या (Choromosome) - 2n=48
भारत की सब्जियों में आलू की खेती (aalu ki kheti) का महत्वपर्ण स्थान है । यह भारत के लगभग सभी राज्यों में खाएं जाने वाली मुख्यत: सब्जी है । आलू में खाएं जाने वाले भाग को कन्द (tuber) कहा जाता है ।
आलू को सब्जियों का राजा भी कहा जाता है, इसके आलावा आलू को सम्पूर्ण एवं गरीब आदमी का भोजन भी कहा जाता है ।
आलू की खेती | aalu ki kheti
दक्षिण अमेरिका के एन्डीज तथा चीली के उच्च क्षेत्रों में आलू की खेती (aalu ki kheti) प्राचीन काल से होती आ रही है । वहाँ पर यह श्वेत लोगों के आगमन से पहले ही उगाया जाता है ।
यूरोपीय देशों में आलू की खेती (aalu ki kheti) लगभग 1570 ई० में होने लगी । भारत में यह 17 वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा लाया गया ।
आलू का जन्म स्थान किसे कहा जाता है?
आलू का जन्म स्थान चीली उद्भव केन्द्र (Chile Centre of Origin) को माना जाता है ।
आलू का भागोलिक विवरण
आलू की कृषि (aalu ki krishi) अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, ब्राजील तथा भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है ।
भारत में आलू की खेती (aalu ki kheti) लगभग 4,17,000 हैक्टर में जाती है । हालांकि यह सभी प्रदेशों में उगाया जाता है, तथापि उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल तथा आसाम में सबसे अधिक क्षेत्र में उगाया जाता है ।
आलू का वानस्पतिक वर्गीकरण
आलू सोलेनेसी (Solanaccac) कुल का पौधा है । इसकी प्रजाति (genus) सोलेनम (Solaman) तथा जाति (species) टूबेरोसम (uberosum) है ।
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आलू की वैरायटी
आलू की किस्मों का प्राथमिक रूप से योरप के देशों से प्रवेशन (introduction) हुआ । उसके बाद देश में अनुसंधान द्वारा विभिन्न जातियों का विकास हुआ ।
ऐसी किस्में जिनका हमारे देश मे प्रवेशन (introduction) बहुत पहले हुआ था । उन जातियों का स्थानीय नाम पड़ा तथा व देशी किस्में कहलाती है इस प्रकार की लगभग 16 किस्में हैं । इनमें से सबसे प्रमुख दार्जलिंग रैड राउंड, फुलवा गोला, साठा हैं । अकेली दार्जलिंग रैड राउंड लगभग 49 विभिन्न नामों से उगाई जाती है ।
आलू की उन्नत किस्में
भारत में लगभग 16 योरोपियन प्रवेशन (introduction) किस्में व्यवसायिक स्तर पर उगायी जाती हैं इनमें सबसे प्रमुख अप - टू - डेट, क्रेग डिफाईन्स, मैंगनम बोनम, ग्रेट स्काट, बैन करुचन तथा प्रेसीडेंट है ।
अब इनका स्थान भारत में विकसित की गई किस्में ले रही हैं । ये किस्में केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला से निकाली गई हैं ।
आलू की अगेती खेती
कुफरी किसान, कुफरी कुबेर, कुफरी कुन्दन, कुफरी सिन्दूरी, कुफरी चन्द्रमुखी, कुफरी खासीगारों, कुफरी नवीन, कुफरी चमत्कार, कुफरी नीलमणी, कुफरी शीतमान, कुफरी ज्योति, कफरी अलंकार, कुफरी जीवन, हाईब्रिड नं 0 45, हाईब्रिड नं 0 209, हाईब्रिड नं ० 2236, हाईब्रिड नं ० 2090, हाईब्रिड नं .2708:
आलू की नयी व्यवसायिक किस्में निम्नलिखित है -
1. आलू की अगेती किस्में -
- कुफरी चन्द्रमुखी (A 2708)
- कुफरी अलंकार
- कुफरी बहार (G 2524)
- कुफरी ज्योति
2. आलू की मध्य कालीन किस्में -
- कुफरी शीतमान
- कुफरी बादशाह
- कुफरी लालिमा
- कुफरी नव ज्योति
3. आलू की पछेति किस्में -
- कुफरी देवा
- कुफरी सिन्दूरी
आलू की खेती के लिए उचित जलवायु
आलू मुख्यतः शीत - ऋतु की फसल है । यह कुछ हद तक पाला सहन कर लेती है ।
आलू का पौधा विस्तृत अनुकूलता रखता है । इसके पौधे 24°C तापक्रम पर सर्वोत्तम वृद्धि करते हैं । कन्दों की अधिकतम वृद्धि 20°C पर होती है ।
गर्मी में आलू की खेती
तापक्रम बढ़ने से कन्दों की वृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है लगभग 30°C पर कन्दों (tubers) की वृद्धि रुक जाती है । छोटे दिन कन्दों की वृद्धि के लिये अच्छे रहते हैं ।
आलू की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
आलू की कृषि (aalu ki krishi) अनेक प्रकार की भूमियों में की जाती है । क्योंकि कन्द (tuber) भूमि में विकसित होते हैं, इसलिए हल्की मृदायें अच्छी रहती हैं ।
हल्की दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है सबसे अच्छी खेती नदी तल (river bed) क्षेत्रों में होती है । आलू के लिए आदर्श भूमियों में जल - निकास की सुव्यवस्था आवश्यक है । वातन (aeration) अच्छा होना चाहिये । क्षारीय भूमि अच्छी नहीं रहती है क्योंकि इनमें स्कैब नामक रोग हो जाता है । इसके लिये 5.2-6.4 विस्तार की मृदायें सर्वोत्तम होती है ।
आलू की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें?
आलू की खेत (aalu ki kheti) की पहली दो जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिये । इसके बाद 3-5 जुताइयाँ देशी हल से करनी चाहिये । देशी हल की प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाया जाना चाहिये, जिससे भूमि भुरभुरी हो जाये ।
आलू की खेती में खाद एवं उर्वरक की कितनी मात्रा देनी चाहिए?
आलू ऊपर की स्तरीय भूमि से पोषक पदार्थो का अवशेषण करता है क्योंकि इसकी जड़ें ऊपरी भूमि में ही रहती हैं । क्योंकि थोड़े समय में अधिक उपज देता है, इसलिये इसे अधिक पोषकों (nutrients) की आवश्यकता पड़ती है । इसकी 10 टन कन्द की उपज भूमि से लगभग 96 पॉड लाईट्रोजन, 42 पौंड फास्फेट तथा 188 पौंड पोटाश लेती है ।
इस आवश्यकता की पूर्ति के लिये 300 क्विटल FYM प्रति हैक्टर खेत की बुवाई से चार सप्ताह पहले भूमि में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिये । 400 किलो ग्राम अमोनियम सल्फेट, 500 किलो ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 140 ग्राम पोटेशियम सल्फेट प्रति हैक्टर बुवाई के समय मेंड़ों में डालना चाहिये । 200 किलो ग्राम अमोनियम सल्फेट प्रति हैक्टर प्रथम बार मिट्टी चढ़ाने से पहले (Topdress) कर देना चाहिये ।
आलू में प्रवर्धन किस प्रकार का होता है?
आलू का कन्दो (tubers) के द्वारा वनस्पतिक प्रवर्धन (vegetative propagation) होता है । इसके कन्दों (tubers) को ही बीज कहा जाता है । छोटे कन्दो को सम्पूर्ण तथा बड़ो की काटकर बोया जाता है ।
आलू के कन्दों में नई फसल के दो तीन माह तक प्रसुप्त अवस्था (dorment period) रहती है । प्रसुप्ति (dormancy) को थायोयूरिया, इथाईलीन क्लोरोहाइड्रीन या पोटेशियम थायोसाइनेट के प्रचरण द्वारा दूर किया जा सकता है ।
बीज की किस्म शुद्धता (purity of variety) आवश्यक है । इसलिये आलू का सर्टीफाइड बीज ही बोना चाहिये । बीज के आलू पर कम से कम तीन स्वस्थ आंखें (eyes) होनी आवश्यक है । बीज की अकुंरण दशा अच्छी होनी चाहिये । बीज का आलू पूर्णतया परिपक्व अवस्था का होना चाहिये । बीज रोग रहित होना चाहिये । बीज सड़न गलन अथवा आयु में डिजनरेशन अवस्था में नहीं होना चाहिए । स्वस्थ बीज का पैदावार की बढ़ोत्तरी पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है ।
एक एकड़ में आलू का बीज कितना लगेगा?
आमतौर ये, बीज के टुकड़े का भार 40 ग्राम से 50 ग्राम तथा उसका व्यास 40-50 मि. मी० रखा जाता है । बीज की दर टुकड़ो के आकार पर निर्भर करती है । 800 से 1500 कि० ग्रा० तक बीज प्रति हैक्टर बोया जाता है ।
आलू की बुवाई कब करें?
हमारे देश में विभिन्न प्रकार की जलवायु होने के कारण आलू की भिन्न - भिन्न स्थानों पर भिन्न - भिन्न समय पर फसलें ली जाती हैं ।
आलू की भिन्न - भिन्न क्षेत्रों में बुवाई का समय भी भिन्न - भिन्न होता है -
- उत्तरी भारत के मैदानों में मध्य सितम्बर से मध्य जनवरी तक बुवाई की जा सकती है । यहाँ पर लगातार दो फसलें भी ली जा सकती हैं ।
- दक्षिण भारत छोटा नागपुर बिहार के पठारी क्षेत्रों में जहाँ पर गर्मियों में कुछ कम तापक्रम रहता है, वहाँ पर वर्ष में दो फसलें ली जा सकती हैं ।
- एक रबी की सामान्य फसल, जिसकी बुवाई अक्टूबर - नवम्बर में की जाती है तथा दूसरी खरीफ की फसल, जिसकी बुवाई जौलाई में की जाती है ।
- नीलगिरी की पहाड़ियो में लगातार तीन फसलें ली जाती है, जिनकी बुवाई क्रमशः अप्रैल, अगस्त व जनवरी में की जाती हैं ।
- उत्तरी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की बुवाई मार्च - अप्रैल में की जाती है ।
आलू उगाने की विधि
आलू बोने की मुख्यतः दो विधियाँ है -
- समतल खेत में हल के पीछे निश्चित दूरी पर बीज डालकर बोया जाता है । यह आसान विधि है, मुख्यतः असिंचित तथा हल्की मृदाओं में प्रयोग की जाती है । अंकुरण के बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ा दी जाती है ।
- मेंड पर बुवाई के लिये खेत में मेंड (ridg) तथा नालियां (furrows) बना ली जाती है, लगभग 45 से. मी. में मेंड तथा 45 से. मी. की नाली रखी जाती है । मेडों में बीज बोया जाता है ।
आलू की बुवाई में फासला कितना रखते है?
बीज बोने का फासला किस्म तथा बीज के आकार के अनुसार रखा जाता है । पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 60 से. मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 से 25 से. मी. रखी जाती है ।
आलू की फसल में निराई - गुड़ाई तथा मिट्टी चढ़ाना
निराई - गुड़ाई करने का मुख्य ध्येय भूमि को भुरभुरी, श्लथ (loose) करना तथा खरपतवारों को नष्ट करना है । इसके साथ - साथ पौधों पर मिट्टी चढ़ाई जाती है । पौधों के 20 से 25 से. मी. तक होने पर पहली बार मिट्टी चढ़ायी जाती है । दूसरी बार मिट्टी कन्दों (tubers) को ढकने के लिये चढ़ाई जाती है ।
आलू की फसल में कितनी सिंचाई की जाती है?
आलू की फसल को काफी सिंचाईयों की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि इसकी जड़े कम गहराई तक जाती है । एक मौसम में लगभग 12 से 24 एकड़ इंच पानी की आवश्यकता पड़ती है । 5 से 7 सिंचाई मौसम व जलवायु के अनुसार आवश्यक होती है ।
आलू की फसल में लगने वाले खरपतवार एवं उनका नियन्त्रण कैसे करें?
आलू के लिये कई प्रकार के खरपतवार नाशक (weedicides) मान्यता प्राप्त है । शायद 2, 4 - D का उपयोग लाभदायक सिद्ध हुआ है । 1.3 कि. ग्रा० 2, 4 - D प्रति हैक्टर बुवाई के आठ दिन बाद उपयोग करना प्रभावकारी होता है ।
आलू की फसल की खुदाई कब एवं कैसे करते है?
आलू की खुदाई, खुरपी, फावड़ा या पोटेटो डिगर से की जाती है । आलू मे फसल लेने का समय बहुत महत्व रखता है । लगभग सभी सब्जियों में फसल लेना एक लगातार (continuous) क्रिया है । क्योंकि अगेती फसल का मूल्य अधिक मिल जाता है, इसलिये आलू का खाने योग्य आकार होते ही खुदाई कर बाजार में लाया जाता है ।
यह अर्धपरिपक्व आलू संग्रह योग्य नहीं होता है, क्योंकि इस अवस्था के आलूओं में पानी की मात्रा अधिक होती है इसलिये ज्यादा समय रखने पर ये सुकड़ जाते हैं और गल - सड़ जाते हैं । संग्रह के लिये पूर्णतः परिपक्व फसल ली जाती है । जब भूमि से ऊपर का पौधा पीला पकड़कर सूख जाता है, तब आलू पूर्णतः परिपक्व हो जाता है ।
आलू भूमि में से खोदकर निकाल लिया जाता है । खोदते समय कन्दों को घाव होने से बचाना चाहिये तथा खोदने के बाद तेज धूप में नहीं छोड़ना चाहिये । तुरन्द खुदे आलूओं पर तेज सूर्य का प्रकाश पड़ने से उन पर सूर्य जलन के दाग (Sun Scandling) पड़ जाते हैं ।
आलू की पैदावार कितनी होती है?
आलू की उपज, फसल के समय तथा किस्म पर बहुत निर्भर करती है । अगेती फसलों की उपज 100-200 क्विन्टल प्रति हैक्टर तथा पछेती फसलों की 300 से 500 क्विन्टल तक उपज प्रति हैक्टर होती है ।